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शेर
जिस्म ऐसा घुल गया है मुझ मरीज़-ए-इश्क़ का
देख कर कहते हैं सब तावीज़ है बाज़ू नहीं
इमाम बख़्श नासिख़
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ग़ज़ल
अब तसव्वुर में कहाँ शक्ल-ए-तमन्ना 'वहशत'
जिस को मुद्दत से न देखा हो वो क्या याद रहे
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
नवाज़ देवबंदी
ग़ज़ल
है अबस दवाओं का सोचना न तू फ़िक्रमंद तबीब हो
तू इलाज उस का करेगा क्या जो मरीज़-ए-इश्क़-ए-हबीब हो
पुरनम इलाहाबादी
ग़ज़ल
साज़ हो ऐश का या सूर-ए-मुसीबत दम-साज़
अब तो हर हाल में हम शुक्र अदा करते हैं
पंडित जगमोहन नाथ रैना शौक़
ग़ज़ल
दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद
अब मुझ को नहीं कुछ भी मोहब्बत के सिवा याद