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शेर
जिस्म ऐसा घुल गया है मुझ मरीज़-ए-इश्क़ का
देख कर कहते हैं सब तावीज़ है बाज़ू नहीं
इमाम बख़्श नासिख़
शेर
कैफ़ इक्रामी
शेर
तू ने मुँह फेरा और उस का नूर सा जाता रहा
था तिरी सूरत ही तक ऐ यार आईने का लुत्फ़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
सिराज औरंगाबादी
शेर
इस तरह चश्म-ए-नीम-वा ग़ाफ़िल भी थी बेदार भी
जैसे नशा हो रात का या सुब्ह का तड़का हुआ
सय्यद अमीन अशरफ़
शेर
ये फ़न्न-ए-इश्क़ है आवे उसे तीनत में जिस की हो
तू ज़ाहिद पीर-ए-नाबालिग़ है बे-तह तुझ को क्या आवे
मीर तक़ी मीर
शेर
रह-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा भी कूचा-ओ-बाज़ार हो जैसे
कभी जो हो नहीं पाता वो सौदा याद आता है
अबु मोहम्मद सहर
शेर
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
ऐश-ए-जहाँ बग़ल में तुम्हारी सब आ रहा
दिल ही दिया जो तुम को तो फिर और क्या रहा