अब्दुल हफ़ीज़ नईमी
ग़ज़ल 7
अशआर 10
खड़ा हुआ हूँ सर-ए-राह मुंतज़िर कब से
कि कोई गुज़रे तो ग़म का ये बोझ उठवा दे
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मैं भी इस सफ़्हा-ए-हस्ती पे उभर सकता हूँ
रंग तो तुम मिरी तस्वीर में भर कर देखो
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मिरे ख़ुलूस पे शक की तो कोई वज्ह नहीं
मिरे लिबास में ख़ंजर अगर छुपा निकला
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मिरे ख़्वाबों की चिकनी सीढ़ियों पर
न जाने किस का बुत टूटा पड़ा है
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हुस्न इक दरिया है सहरा भी हैं उस की राह में
कल कहाँ होगा ये दरिया ये भी तो सोचो ज़रा
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