फ़ैज़ान हाशमी
ग़ज़ल 9
अशआर 9
जिस परी पर मर मिटे थे वो परी-ज़ादी न थी
ब'अद में जाना कि उस के दोनों पर होते थे हम
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तेरा बोसा ऐसा प्याला है जिस में से
पानी पीने वाला प्यासा रह जाएगा
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बस यही सोच के रहता हूँ मैं ज़िंदा इस में
ये मोहब्बत है कोई मर नहीं सकता इस में
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वो क्या ख़ुशी थी जो दिल में बहाल रहती थी
मगर वज्ह नहीं बनती थी मुस्कुराने की
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