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Mohammad Rafi Sauda's Photo'

मोहम्मद रफ़ी सौदा

1713 - 1781 | दिल्ली, भारत

18वी सदी के बड़े शायरों में शामिल। मीर तक़ी 'मीर' के समकालीन

18वी सदी के बड़े शायरों में शामिल। मीर तक़ी 'मीर' के समकालीन

मोहम्मद रफ़ी सौदा

ग़ज़ल 51

अशआर 66

कैफ़िय्यत-ए-चश्म उस की मुझे याद है 'सौदा'

साग़र को मिरे हाथ से लीजो कि चला मैं

ग़रज़ कुफ़्र से कुछ दीं से है मतलब

तमाशा-ए-दैर-ओ-हरम देखते हैं

गिला लिखूँ मैं अगर तेरी बेवफ़ाई का

लहू में ग़र्क़ सफ़ीना हो आश्नाई का

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मत पूछ ये कि रात कटी क्यूँके तुझ बग़ैर

इस गुफ़्तुगू से फ़ाएदा प्यारे गुज़र गई

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'सौदा' की जो बालीं पे गया शोर-ए-क़यामत

ख़ुद्दाम-ए-अदब बोले अभी आँख लगी है

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रुबाई 4

 

क़सीदा 1

 

पहेली 3

 

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Mirza Rafi Sauda

Zia talks about Mirza Rafi Sauda ज़िया मोहीउद्दीन

गुल फेंके है औरों की तरफ़ बल्कि समर भी

बेगम अख़्तर

गुल फेंके है औरों की तरफ़ बल्कि समर भी

बेगम अख़्तर

गदा दस्त-ए-अहल-ए-करम देखते हैं

ज़मर्रुद बानो

गुल फेंके है औरों की तरफ़ बल्कि समर भी

बेगम अख़्तर

गुल फेंके है औरों की तरफ़ बल्कि समर भी

मोहम्मद रफ़ी सौदा

जो गुज़री मुझ पे मत उस से कहो हुआ सो हुआ

टीना सानी

जो गुज़री मुझ पे मत उस से कहो हुआ सो हुआ

मोहम्मद रफ़ी सौदा

जो गुज़री मुझ पे मत उस से कहो हुआ सो हुआ

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ऑडियो 9

अपने का है गुनाह बेगाने ने क्या किया

गुल फेंके है औरों की तरफ़ बल्कि समर भी

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