निवेश साहू
ग़ज़ल 24
नज़्म 6
नाराज़गी
मेरी जाँ तुम्हारी ये नाराज़गी मेरे सीने में चुभते हुए कब मिरी ज़िंदगी को निगल जाएगी इस का कोई भरोसा नहीं है
अशआर 8
अगर होता तो ख़ुद को फिर बनाता
मगर अफ़्सोस कूज़ा-गर नहीं हूँ
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