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उबैद हारिस

ग़ज़ल 6

अशआर 9

इन्हें आगे निकल जाने दो 'हारिस'

बलाएँ कब से पीछा कर रही हैं

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ख़ाली दीवार बुरी लगती है

मेरी तस्वीर ही रहने देते

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खोलो कोई ऐब किसी का भी यहाँ पर

आसेब को मिल जाएगा दरवाज़ा खुला सा

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तह-ब-तह खुलती ही रहती है सदा

'मीर' के दीवान सी है ज़िंदगी

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हम किताबों में जिसे पाते हैं 'हारिस'

आदमी वैसा कोई मिलता कहाँ है

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पुस्तकें 3

 

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