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पल्लव मिश्रा

1998 | दिल्ली, भारत

पल्लव मिश्रा

ग़ज़ल 11

अशआर 13

तमाम फ़र्क़ मोहब्बत में एक बात के हैं

वो अपनी ज़ात का नईं है हम उस की ज़ात के हैं

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मैं अपनी मौत से ख़ल्वत में मिलना चाहता हूँ

सो मेरी नाव में बस मैं हूँ नाख़ुदा नहीं है

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मैं तुझ से मिलने समय से पहले पहुँच गया था

सो तेरे घर के क़रीब कर भटक रहा हूँ

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मकीन-ए-दिल को ख़ानुमा-ख़राबियों से इश्क़ था

क़याम ढूँढता रहा तुम्हारी छत के बा'द भी

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वो नशा है के ज़बाँ अक़्ल से करती है फ़रेब

तू मिरी बात के मफ़्हूम पे जाता है कहाँ

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चित्र शायरी 1

 

वीडियो 6

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

पल्लव मिश्रा

पल्लव मिश्रा

कुछ ऐसे दो-जहाँ से राब्ता रक्खा गया है

पल्लव मिश्रा

तुम्हारी दुनिया के बाहर अंदर भटक रहा हूँ

पल्लव मिश्रा

लहू में घुल घुल के बह रहे थे रगों के अंदर

पल्लव मिश्रा

वो बार-ए-फ़र्ज़-ए-तकल्लुफ मुझी को ढोना पड़ा

पल्लव मिश्रा

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