राज़ इलाहाबादी
ग़ज़ल 7
अशआर 4
अश्क-ए-ग़म ले के आख़िर किधर जाएँ हम आँसुओं की यहाँ कोई क़ीमत नहीं
आप ही अपना दामन बढ़ा दीजिए वर्ना मोती ज़मीं पर बिखर जाएँगे
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आशियाँ जल गया गुल्सिताँ लुट गया हम क़फ़स से निकल कर किधर जाएँगे
इतने मानूस सय्याद से हो गए अब रिहाई मिलेगी तो मर जाएँगे
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वीडियो 6
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