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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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राज़ मुरादाबादी

1916 - 1982

राज़ मुरादाबादी

ग़ज़ल 3

 

अशआर 3

किसी के वादा-ए-सब्र-आज़मा की ख़ैर कि हम

अब ए'तिबार की हद से गुज़रते जाते हैं

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रंग-ओ-बू के पर्दे में कौन ये ख़िरामाँ है

हर नफ़स मोअत्तर है हर नज़र ग़ज़ल-ख़्वाँ है

हर इक शिकस्त-ए-तमन्ना पे मुस्कुराते हैं

वो क्या करें जो मुसलसल फ़रेब खाते हैं

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पुस्तकें 3

 

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