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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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यासिर तहसीन

ग़ज़ल 7

अशआर 24

उस ने दिन जल्दी ढलने की ख़्वाहिश की

धरती ने रफ़्तार बढ़ा दी गर्दिश की

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ज़िंदगी राएगाँ गई मेरी

उस गली से दुकाँ गई मेरी

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जो तुम होगी तो दिल हवेली सराए होगी

सराए जिस में हसीन चेहरे रुका करेंगे

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दग़ा से बाज़ आओ मीर 'जा'फ़र'

हमारे लोग मारे जा रहे हैं

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पहले तू इक झूटे ग़म में मिट जाने का नाटक रच

फिर दुनिया को जा जा कर बतला तू कितने दुख में है

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