ज़फ़र अज्मी
ग़ज़ल 8
अशआर 10
इक ऐसा वक़्त भी सैर-ए-चमन में देखा है
कली के सीने से जब बे-कली निकलती है
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कास-ए-दर्द लिए कब से खड़े सोचते हैं
दस्त-ए-इम्कान से क्या चीज़ न जाने निकले
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बजा है ज़िंदगी से हम बहुत रहे नाराज़
मगर बताओ ख़फ़ा तुम से भी कभू हुए हैं
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ये अलग बात कि वो दिल से किसी और का था
बात तो उस ने हमारी भी ब-ज़ाहिर रक्खी
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ये अहद क्या है कि सब पर गिराँ गुज़रता है
ये क्या तिलिस्म है क्या इम्तिहाँ गुज़रता है
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