अमीर क़ज़लबाश
पुस्तकें 7
चित्र शायरी 4
मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा गिरा दिया है तो साहिल पे इंतिज़ार न कर अगर वो डूब गया है तो दूर निकलेगा उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़ हमें यक़ीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा यक़ीं न आए तो इक बात पूछ कर देखो जो हँस रहा है वो ज़ख़्मों से चूर निकलेगा उस आस्तीन से अश्कों को पोछने वाले उस आस्तीन से ख़ंजर ज़रूर निकलेगा
मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा गिरा दिया है तो साहिल पे इंतिज़ार न कर अगर वो डूब गया है तो दूर निकलेगा उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़ हमें यक़ीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा यक़ीं न आए तो इक बात पूछ कर देखो जो हँस रहा है वो ज़ख़्मों से चूर निकलेगा उस आस्तीन से अश्कों को पोछने वाले उस आस्तीन से ख़ंजर ज़रूर निकलेगा