आनंद नारायण मुल्ला के शेर
उस इक नज़र के बज़्म में क़िस्से बने हज़ार
उतना समझ सका जिसे जितना शुऊर था
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आईना-ए-रंगीन जिगर कुछ भी नहीं क्या
क्या हुस्न ही सब कुछ है नज़र कुछ भी नहीं क्या
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एक इक लम्हे में जब सदियों की सदियाँ कट गईं
ऐसी कुछ रातें भी गुज़री हैं मिरी तेरे बग़ैर
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इश्क़ में वो भी एक वक़्त है जब
बे-गुनाही गुनाह है प्यारे
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हम ने भी की थीं कोशिशें हम न तुम्हें भुला सके
कोई कमी हमीं में थी याद तुम्हें न आ सके
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ख़ून-ए-जिगर के क़तरे और अश्क बन के टपकें
किस काम के लिए थे किस काम आ रहे हैं
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दयार-ए-इश्क़ है ये ज़र्फ़-ए-दिल की जाँच होती है
यहाँ पोशाक से अंदाज़ा इंसाँ का नहीं होता
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अक़्ल के भटके होऊँ को राह दिखलाते हुए
हम ने काटी ज़िंदगी दीवाना कहलाते हुए
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सर-ए-महशर यही पूछूँगा ख़ुदा से पहले
तू ने रोका भी था बंदे को ख़ता से पहले
तिरी जफ़ा को जफ़ा मैं तो कह नहीं सकता
सितम सितम ही नहीं है जो दिल को रास आए
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तुम जिस को समझते हो कि है हुस्न तुम्हारा
मुझ को तो वो अपनी ही मोहब्बत नज़र आई
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रोने वाले तुझे रोने का सलीक़ा ही नहीं
अश्क पीने के लिए हैं कि बहाने के लिए
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तू ने फेरी लाख नर्मी से नज़र
दिल के आईने में बाल आ ही गया
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मुझे कर के चुप कोई कहता है हँस कर
उन्हें बात करने की आदत नहीं है
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अब बन के फ़लक-ज़ाद दिखाते हैं हमें आँख
ज़र्रे वही कल जिन को उछाला था हमीं ने
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शम्अ' इक मोम के पैकर के सिवा कुछ भी न थी
आग जब तन में लगाई है तो जान आई है
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हर इक सूरत पे धोका खा रही हैं तेरी सूरत का
अभी आता नहीं नज़रों को ता-हद्द-ए-नज़र जाना
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ग़म-ए-हयात शरीक-ए-ग़म-ए-मोहब्बत है
मिला दिए हैं कुछ आँसू मिरी शराब के साथ
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'मुल्ला' बना दिया है इसे भी महाज़-ए-जंग
इक सुल्ह का पयाम थी उर्दू ज़बाँ कभी
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टैग : उर्दू
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अश्क-ए-ग़म-ए-उल्फ़त में इक राज़-ए-निहानी है
पी जाओ तो अमृत है बह जाए तो पानी है
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वो कौन हैं जिन्हें तौबा की मिल गई फ़ुर्सत
हमें गुनाह भी करने को ज़िंदगी कम है
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कहने को लफ़्ज़ दो हैं उम्मीद और हसरत
इन में निहाँ मगर इक दुनिया की दास्ताँ है
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मोहब्बत फ़र्क़ खो देती है आ'ला और अदना का
रुख़-ए-ख़ुर्शीद में ज़र्रे की हम तनवीर देखेंगे
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हद-ए-तकमील को पहुँची तिरी रानाई-ए-हुस्न
जो कसर थी वो मिटा दी तिरी अंगड़ाई ने
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टैग : अंगड़ाई
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इश्क़ करता है तो फिर इश्क़ की तौहीन न कर
या तो बेहोश न हो, हो तो न फिर होश में आ
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हुस्न के जल्वे नहीं मुहताज-ए-चश्म-ए-आरज़ू
शम्अ जलती है इजाज़त ले के परवाने से क्या
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टैग : हुस्न
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मैं फ़क़त इंसान हूँ हिन्दू मुसलमाँ कुछ नहीं
मेरे दिल के दर्द में तफ़रीक़-ए-ईमाँ कुछ नहीं
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जिस के ख़याल में हूँ गुम उस को भी कुछ ख़याल है
मेरे लिए यही सवाल सब से बड़ा सवाल है
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ख़ुदा जाने दुआ थी या शिकायत लब पे बिस्मिल के
नज़र सू-ए-फ़लक थी हाथ में दामान-ए-क़ातिल था
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दिल-ए-बेताब का अंदाज़-ए-बयाँ है वर्ना
शुक्र में कौन सी शय है जो शिकायत में नहीं
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मुख़्तसर अपनी हदीस-ए-ज़ीस्त ये है इश्क़ में
पहले थोड़ा सा हँसे फिर उम्र भर रोया किए
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अब और इस के सिवा चाहते हो क्या 'मुल्ला'
ये कम है उस ने तुम्हें मुस्कुरा के देख लिया
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टैग : मुस्कुराहट
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नज़र जिस की तरफ़ कर के निगाहें फेर लेते हो
क़यामत तक फिर उस दिल की परेशानी नहीं जाती
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गले लगा के किया नज़्र-ए-शो'ला-ए-आतिश
क़फ़स से छूट के फिर आशियाँ मिले न मिले
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फ़र्क़ जो कुछ है वो मुतरिब में है और साज़ में है
वर्ना नग़्मा वही हर पर्दा-ए-आवाज़ में है
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निज़ाम-ए-मय-कदा साक़ी बदलने की ज़रूरत है
हज़ारों हैं सफ़ें जिन में न मय आई न जाम आया
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न जाने कितनी शमएँ गुल हुईं कितने बुझे तारे
तब इक ख़ुर्शीद इतराता हुआ बाला-ए-बाम आया
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