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आरज़ू सहारनपुरी

1901 - 1983 | कोलकाता, भारत

आरज़ू सहारनपुरी

ग़ज़ल 16

अशआर 4

कभी कभी तो इक ऐसा मक़ाम आया है

मैं हुस्न बन के ख़ुद अपनी नज़र से गुज़रा हूँ

गो सरापा-ए-जब्र हैं फिर भी

साहिब-ए-इख़्तियार हैं हम लोग

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भूल के कभी फ़ाश कर राज़-ओ-नियाज़-ए-आशिक़ी

वो भी अगर हों सामने आँख उठा के भी देख

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महसूस कर रहा हूँ ख़ुद अपने जमाल को

जितना तिरे क़रीब चला जा रहा हूँ मैं

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