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Aziz Bano Darab Wafa's Photo'

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

1926 - 2005 | लखनऊ, भारत

लखनऊ की प्रतिष्ठित शायरा जिन्होंने अपनी अभिव्यक्ति में स्त्रीत्व को जगह दी

लखनऊ की प्रतिष्ठित शायरा जिन्होंने अपनी अभिव्यक्ति में स्त्रीत्व को जगह दी

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

ग़ज़ल 32

अशआर 76

ज़मीन मोम की होती है मेरे क़दमों में

मिरा शरीक-ए-सफ़र आफ़्ताब होता है

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मैं उस के सामने उर्यां लगूँगी दुनिया को

वो मेरे जिस्म को मेरा लिबास कर देगा

मिरे अंदर ढंडोरा पीटता है कोई रह रह के

जो अपनी ख़ैरियत चाहे वो बस्ती से निकल जाए

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वरक़ उलट दिया करता है बे-ख़याली में

वो शख़्स जब मिरा चेहरा किताब होता है

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शहर ख़्वाबों का सुलगता रहा और शहर के लोग

बे-ख़बर सोए हुए अपने मकानों में मिले

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पुस्तकें 2

 

चित्र शायरी 1

 

ऑडियो 11

अपनी बीती हुई रंगीन जवानी देगा

अलावा इक चुभन के क्या है ख़ुद से राब्ता मेरा

एक दिए ने सदियों क्या क्या देखा है बतलाए कौन

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