दिल शाहजहाँपुरी के शेर
हुस्न-ए-ख़ुद-बीं को हुआ और सिवा नाज़-ए-हिजाब
शौक़ जब हद से बढ़ा चश्म-ए-तमाशाई का
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आरज़ू लुत्फ़ तलब इश्क़ सरासर नाकाम
मुब्तला ज़िंदगी-ए-दिल इन्हीं औहाम में है
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असर-ए-इश्क़ से हूँ सूरत-ए-शम्अ ख़ामोश
ये मुरक़्क़ा है मिरी हसरत-ए-गोयाई का
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मैं ग़र्क़ हो रहा था कि तूफ़ान-ए-इश्क़ ने
इक मौज-ए-बे-क़रार को साहिल बना दिया
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आग़ाज़-ए-मोहब्बत से अंजाम-ए-मोहब्बत तक
गुज़रा है जो कुछ हम पर तुम ने भी सुना होगा
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टैग : मोहब्बत
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क्या जाने किस ख़याल से छोड़ा प हाल-ए-ज़ार
मुझ पर बड़ा करम है मिरे चारासाज़ का
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मय-ए-कौसर का असर चश्म-ए-सियह-फ़ाम में है
साक़ी-ए-मस्त अजब कैफ़ तिरे जाम में है
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वक़्त-ए-रुख़्सत तसल्लियाँ दे कर
और भी तुम ने बे-क़रार किया
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ये भीगी रात ये ठंडा समाँ ये कैफ़-ए-बहार
ये कोई वक़्त है पहलू से उठ के जाने का
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शबाब ढलते ही आई पीरी मआ'ल पर अब नज़र हुई है
बड़ी ही ग़फ़लत में शब गुज़ारी कहाँ पहुँच कर सहर हुई है
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हम को बेचैन किए जाते हैं
हाए क्या शय वो लिए जाते हैं
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