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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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एजाज़ सिद्दीक़ी

1913 - 1978 | मुंबई, भारत

प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रकार और शयार जिन्होंने "शायर" जैसी साहित्यिक पत्रिका का संपादन किया

प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रकार और शयार जिन्होंने "शायर" जैसी साहित्यिक पत्रिका का संपादन किया

एजाज़ सिद्दीक़ी

ग़ज़ल 8

नज़्म 1

 

अशआर 3

आज भी बुरी क्या है कल भी ये बुरी क्या थी

इस का नाम दुनिया है ये बदलती रहती है

और ज़िक्र क्या कीजे अपने दिल की हालत का

कुछ बिगड़ती रहती है कुछ सँभलती रहती है

दुनिया सबब-ए-शोरिश-ए-ग़म पूछ रही है

इक मोहर-ए-ख़मोशी है कि होंटों पे लगी है

 

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