फ़हमीदा रियाज़ के शेर
चलते चलते कुछ थम जाना फिर बोझल क़दमों से चलना
ये कैसी कसक सी बाक़ी है जब पाँव में वो काँटा भी नहीं
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किस से अब आरज़ू-ए-वस्ल करें
इस ख़राबे में कोई मर्द कहाँ
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मिरी बेबसी मुझ पे ज़ाहिर है लेकिन
तुम्हारी तमन्ना तुम्हारी तमन्ना
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