फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली
ग़ज़ल 8
अशआर 7
अहल-ए-हुनर के दिल में धड़कते हैं सब के दिल
सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है
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फ़रेब-ए-करम इक तो उन का है इस पर
सितम मेरी ख़ुश-फ़हमियाँ और भी हैं
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हमारे उन के तअल्लुक़ का अब ये आलम है
कि दोस्ती का है क्या ज़िक्र दुश्मनी भी नहीं
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