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Firaq Gorakhpuri's Photo'

फ़िराक़ गोरखपुरी

1896 - 1982 | इलाहाबाद, भारत

प्रमुख पूर्वाधुनिक शायरों में विख्यात, जिन्होंने आधुनिक उर्दू गज़ल के लिए राह बनाई/अपने गहरे आलोचनात्मक विचारों के लिए विख्यात/भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित

प्रमुख पूर्वाधुनिक शायरों में विख्यात, जिन्होंने आधुनिक उर्दू गज़ल के लिए राह बनाई/अपने गहरे आलोचनात्मक विचारों के लिए विख्यात/भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित

फ़िराक़ गोरखपुरी

ग़ज़ल 70

नज़्म 8

अशआर 182

तिरा 'फ़िराक़' तो उस दिन तिरा फ़िराक़ हुआ

जब उन से प्यार किया मैं ने जिन से प्यार नहीं

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मिरे दिल से कभी ग़ाफ़िल हों ख़ुद्दाम-ए-मय-ख़ाना

ये रिंद-ए-ला-उबाली बे-पिए भी तो बहकता है

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लाई ऐसों-वैसों को ख़ातिर में आज तक

ऊँची है किस क़दर तिरी नीची निगाह भी

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वो कुछ रूठी हुई आवाज़ में तज्दीद-ए-दिल-दारी

नहीं भूला तिरा वो इल्तिफ़ात-ए-सर-गिराँ अब तक

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समझना कम हम अहल-ए-ज़मीं को

उतरते हैं सहीफ़े आसमाँ से

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उद्धरण 26

ग़ज़ल वो बाँसुरी है जिसे ज़िंदगी की हलचल में हमने कहीं खो दिया था और जिसे ग़ज़ल का शायर कहीं से फिर से ढूंढ लाता है और जिसकी लय सुनकर भगवान की आँखों में भी इन्सान के लिए मुहब्बत के आँसू जाते हैं।

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सोज़-ओ-गुदाज़ में जब पुख़्तगी जाती है तो ग़म, ग़म नहीं रहता बल्कि एक रुहानी संजीदगी में बदल जाता है।

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मौजूदा तमद्दुन के मुतालबे ऐसे हैं कि हमें रोमन रस्म-उल-ख़त को अपनाना पड़ेगा।

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शायरी का मक़सद हम जो कुछ भी समझें उसका हक़ीक़ी मक़सद बुलंद-तरीन विजदानी कैफ़ियात और जमालियाती शुऊर पैदा करने के अलावा कुछ नहीं।

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क़ौम और क़ौमी ज़िंदगी मिट रही है और हम हैं कि हिन्दी हिन्दी और उर्दू उर्दू किए जा रहे हैं।

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रुबाई 61

क़िस्सा 21

लेख 12

पुस्तकें 131

चित्र शायरी 21

वीडियो 36

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

फ़िराक़ गोरखपुरी

फ़िराक़ गोरखपुरी

फ़िराक़ गोरखपुरी

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फ़िराक़ गोरखपुरी

फ़िराक़ गोरखपुरी

फ़िराक़ गोरखपुरी

Firaq Gorakhpuri - a rare video

फ़िराक़ गोरखपुरी

हर साज़ से होती नहीं ये धुन पैदा

फ़िराक़ गोरखपुरी

आधी रात

1 फ़िराक़ गोरखपुरी

हर साज़ से होती नहीं ये धुन पैदा

फ़िराक़ गोरखपुरी

ऑडियो 26

कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम

कमी न की तिरे वहशी ने ख़ाक उड़ाने में

किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी

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