ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल 42
नज़्म 8
अशआर 48
उसी की शक्ल मुझे चाँद में नज़र आए
वो माह-रुख़ जो लब-ए-बाम भी नहीं आता
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
किताब-ए-आरज़ू के गुम-शुदा कुछ बाब रक्खे हैं
तिरे तकिए के नीचे भी हमारे ख़्वाब रक्खे हैं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
तिरी आवाज़ को इस शहर की लहरें तरसती हैं
ग़लत नंबर मिलाता हूँ तो पहरों बात होती है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
नाम लिख लिख के तिरा फूल बनाने वाला
आज फिर शबनमीं आँखों से वरक़ धोता है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
हिज्र के तपते मौसम में भी दिल उन से वाबस्ता है
अब तक याद का पत्ता पत्ता डाली से पैवस्ता है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
पुस्तकें 3
चित्र शायरी 5
वीडियो 26
This video is playing from YouTube