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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

हबीब हाश्मी के शेर

हर शब-ए-ग़म की सहर हो ये ज़रूरी है मगर

सब की ताबिंदा सहर हो ये ज़रूरी तो नहीं

सफ़र की आख़िरी मंज़िल में पास आया है

तमाम उम्र था जो दूर आसमाँ की तरह

शब की तन्हाई में उभरी हुई आवाज़-ए-जरस

सुब्ह-गाई का गजर हो ये ज़रूरी तो नहीं

सरहद-ए-दश्त से आबादी को जाने वालो

शहर में और भी ख़ूँ-रेज़ नज़ारे होंगे

मैं ख़स्ता-हाल होता ये अजनबी से लगते

ये हसीं हसीं फ़रिश्ते मुझे आदमी से लगते

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