इब्न-ए-सफ़ी
अशआर 11
चाँद का हुस्न भी ज़मीन से है
चाँद पर चाँदनी नहीं होती
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डूब जाने की लज़्ज़तें मत पूछ
कौन ऐसे में पार उतरा है
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बुझ गया दिल तो ख़राबी हुई है
फिर किसी शोला-जबीं से मिलिए
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बिल-आख़िर थक हार के यारो हम ने भी तस्लीम किया
अपनी ज़ात से इश्क़ है सच्चा बाक़ी सब अफ़्साने हैं
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लिखने को लिख रहे हैं ग़ज़ब की कहानियाँ
लिक्खी न जा सकी मगर अपनी ही दास्ताँ
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ग़ज़ल 9
नज़्म 1
चित्र शायरी 2
वीडियो 3
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