इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल 137
अशआर 96
इश्क़ क्या कार-ए-हवस भी कोई आसान नहीं
ख़ैर से पहले इसी काम के क़ाबिल हो जाओ
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ख़िराज माँग रही है वो शाह-बानू-ए-शहर
सो हम भी हदिया-ए-दस्त-ए-तलब गुज़ारते हैं
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मौला, फिर मिरे सहरा से बिन बरसे बादल लौट गए
ख़ैर शिकायत कोई नहीं है अगले बरस बरसा देना
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हम ने मुद्दत से उलट रक्खा है कासा अपना
दस्त-ए-दादार तिरे दिरहम-ओ-दीनार पे ख़ाक
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पुस्तकें 17
चित्र शायरी 6
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