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जौन एलिया के शेर
दाद-ओ-तहसीन का ये शोर है क्यूँ
हम तो ख़ुद से कलाम कर रहे हैं
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शब जो हम से हुआ मुआफ़ करो
नहीं पी थी बहक गए होंगे
हम कहाँ और तुम कहाँ जानाँ
हैं कई हिज्र दरमियाँ जानाँ
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टैग : हिज्र
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कैसे कहें कि तुझ को भी हम से है वास्ता कोई
तू ने तो हम से आज तक कोई गिला नहीं किया
हम-नफ़सान-ए-वज़्अ'-दार मुस्तमिआन-ए-बुर्द-बार
हम तो तुम्हारे वास्ते एक वबाल हो गए
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वो जो न आने वाला है ना उस से मुझ को मतलब था
आने वालों से क्या मतलब आते हैं आते होंगे
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मैं रहा उम्र भर जुदा ख़ुद से
याद मैं ख़ुद को उम्र भर आया
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तुझ को ख़बर नहीं कि तिरा कर्ब देख कर
अक्सर तिरा मज़ाक़ उड़ाता रहा हूँ मैं
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हम को हरगिज़ नहीं ख़ुदा मंज़ूर
या'नी हम बे-तरह ख़ुदा के हैं
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ख़ीरा-सरान-ए-शौक़ का कोई नहीं है जुम्बा-दार
शहर में इस गिरोह ने किस को ख़फ़ा नहीं किया
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ख़र्च चलेगा अब मिरा किस के हिसाब में भला
सब के लिए बहुत हूँ मैं अपने लिए ज़रा नहीं
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ये बहुत ग़म की बात हो शायद
अब तो ग़म भी गँवा चुका हूँ मैं
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अपना रिश्ता ज़मीं से ही रक्खो
कुछ नहीं आसमान में रक्खा
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याद उसे इंतिहाई करते हैं
सो हम उस की बुराई करते हैं
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टैग : याद
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कितनी दिलकश हो तुम कितना दिल-जू हूँ मैं
क्या सितम है कि हम लोग मर जाएँगे
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साबित हुआ सुकून-ए-दिल-ओ-जाँ कहीं नहीं
रिश्तों में ढूँढता है तो ढूँडा करे कोई
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हो कभी तो शराब-ए-वस्ल नसीब
पिए जाऊँ मैं ख़ून ही कब तक
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पड़ी रहने दो इंसानों की लाशें
ज़मीं का बोझ हल्का क्यूँ करें हम
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मेरी हर बात बे-असर ही रही
नक़्स है कुछ मिरे बयान में क्या
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उस से हर-दम मोआ'मला है मगर
दरमियाँ कोई सिलसिला ही नहीं
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हुस्न से अर्ज़-ए-शौक़ न करना हुस्न को ज़क पहुँचाना है
हम ने अर्ज़-ए-शौक़ न कर के हुस्न को ज़क पहुँचाई है
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टैग : हुस्न
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ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता
एक ही शख़्स था जहान में क्या
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टैग : श्रद्धांजलि
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कौन से शौक़ किस हवस का नहीं
दिल मिरी जान तेरे बस का नहीं
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मुझे अब होश आता जा रहा है
ख़ुदा तेरी ख़ुदाई जा रही है
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मुझ से अब लोग कम ही मिलते हैं
यूँ भी मैं हट गया हूँ मंज़र से
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तुम्हारा हिज्र मना लूँ अगर इजाज़त हो
मैं दिल किसी से लगा लूँ अगर इजाज़त हो
दिल अब दुनिया पे ला'नत कर कि इस की
बहुत ख़िदमत-गुज़ारी हो गई है
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सोचता हूँ कि उस की याद आख़िर
अब किसे रात भर जगाती है
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टैग : याद
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ज़िंदगी किस तरह बसर होगी
दिल नहीं लग रहा मोहब्बत में
बहुत कतरा रहे हू मुग़्बचों से
गुनाह-ए-तर्क-ए-बादा कर लिया क्या
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वो मुंकिर है तो फिर शायद हर इक मकतूब-ए-शौक़ उस ने
सर-अंगुश्त-ए-हिनाई से ख़लाओं में लिखा होगा
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मुझे ग़रज़ है मिरी जान ग़ुल मचाने से
न तेरे आने से मतलब न तेरे जाने से
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जम्अ' हम ने किया है ग़म दिल में
इस का अब सूद खाए जाएँगे
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टैग : ग़म
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मोहज़्ज़ब आदमी पतलून के बटन तो लगा
कि इर्तिक़ा है इबारत बटन लगाने से
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मुझ को आदत है रूठ जाने की
आप मुझ को मना लिया कीजे
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है ये वजूद की नुमूद अपनी नफ़स नफ़स गुरेज़
वक़्त की सारी बस्तियाँ अपनी हज़ीमतों में हैं
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टैग : वक़्त
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मैं भी बहुत अजीब हूँ इतना अजीब हूँ कि बस
ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं
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टैग : ज़र्बुल-मसल
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सारी गली सुनसान पड़ी थी बाद-ए-फ़ना के पहरे में
हिज्र के दालान और आँगन में बस इक साया ज़िंदा था
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ख़ुदा से ले लिया जन्नत का व'अदे
ये ज़ाहिद तो बड़े ही घाग निकले
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जाते जाते आप इतना काम तो कीजे मिरा
याद का सारा सर-ओ-सामाँ जलाते जाइए
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टैग : याद
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मैं बिस्तर-ए-ख़याल पे लेटा हूँ उस के पास
सुब्ह-ए-अज़ल से कोई तक़ाज़ा किए बग़ैर
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टैग : अज़ल
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जानिए उस से निभेगी किस तरह
वो ख़ुदा है मैं तो बंदा भी नहीं
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अपने अंदर हँसता हूँ मैं और बहुत शरमाता हूँ
ख़ून भी थूका सच-मुच थूका और ये सब चालाकी थी
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अब जो रिश्तों में बँधा हूँ तो खुला है मुझ पर
कब परिंद उड़ नहीं पाते हैं परों के होते
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अब नहीं कोई बात ख़तरे की
अब सभी को सभी से ख़तरा है
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टैग : सोशल डिस्टेन्सिंग शायरी
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क्या कहा इश्क़ जावेदानी है!
आख़िरी बार मिल रही हो क्या