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Jigar Moradabadi's Photo'

जिगर मुरादाबादी

1890 - 1960 | मुरादाबाद, भारत

सबसे प्रमुख पूर्वाधुनिक शायरों में शामिल अत्याधिक लोकप्रियता के लिए विख्यात

सबसे प्रमुख पूर्वाधुनिक शायरों में शामिल अत्याधिक लोकप्रियता के लिए विख्यात

जिगर मुरादाबादी के शेर

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सुनते थे मोहब्बत आसाँ है वल्लाह बहुत आसाँ है मगर

इस सहल में जो दुश्वारी है वो मुश्किल सी मुश्किल में नहीं

आबाद अगर दिल हो तो बरबाद कीजिए

गुलशन बन सके तो बयाबाँ बनाइए

जिसे सय्याद ने कुछ गुल ने कुछ बुलबुल ने कुछ समझा

चमन में कितनी मानी-ख़ेज़ थी इक ख़ामुशी मिरी

मेरे दर्द में ये ख़लिश कहाँ मेरे सोज़ में ये तपिश कहाँ

किसी और ही की पुकार है मिरी ज़िंदगी की सदा नहीं

धड़कने लगा दिल नज़र झुक गई

कभी उन से जब सामना हो गया

आँखों में नमी सी है चुप चुप से वो बैठे हैं

नाज़ुक सी निगाहों में नाज़ुक सा फ़साना है

कमाल-ए-तिश्नगी ही से बुझा लेते हैं प्यास अपनी

इसी तपते हुए सहरा को हम दरिया समझते हैं

अल्लाह अगर तौफ़ीक़ दे इंसान के बस का काम नहीं

फ़ैज़ान-ए-मोहब्बत आम सही इरफ़ान-ए-मोहब्बत आम नहीं

गुदाज़-ए-इश्क़ नहीं कम जो मैं जवाँ रहा

वही है आग मगर आग में धुआँ रहा

सुना है हश्र में हर आँख उसे बे-पर्दा देखेगी

मुझे डर है तौहीन-ए-जमाल-ए-यार हो जाए

मुझ को मस्त-ए-शराब होना था

मोहतसिब को कबाब होना था

ये मय-ख़ाना है बज़्म-ए-जम नहीं है

यहाँ कोई किसी से कम नहीं है

गुनाहगार के दिल से बच के चल ज़ाहिद

यहीं कहीं तिरी जन्नत भी पाई जाती है

ग़रज़ किसी से वास्ता मुझे काम अपने ही काम से

तिरे ज़िक्र से तिरी फ़िक्र से तिरी याद से तिरे नाम से

या वो थे ख़फ़ा हम से या हम हैं ख़फ़ा उन से

कल उन का ज़माना था आज अपना ज़माना है

मुझ को नहीं क़ुबूल दो-आलम की वुसअतें

क़िस्मत में कू-ए-यार की दो-गज़ ज़मीं रहे

ये राज़ सुन रहे हैं इक मौज-ए-दिल-नशीं से

डूबे हैं हम जहाँ पर उभरेंगे फिर वहीं से

ज़ब्त का जिन्हें दावा इश्क़ में रहा अक्सर

हाल हम ने देखा है बेशतर ख़राब उन का

सेहन-ए-चमन को अपनी बहारों पे नाज़ था

वो गए तो सारी बहारों पे छा गए

इधर से भी है सिवा कुछ उधर की मजबूरी

कि हम ने आह तो की उन से आह भी हुई

तिरे जमाल की तस्वीर खींच दूँ लेकिन

ज़बाँ में आँख नहीं आँख में ज़बान नहीं

आप के दुश्मन रहें वक़्फ़-ए-ख़लिश सर्फ़-ए-तपिश

आप क्यूँ ग़म-ख़्वारी-ए-बीमार-ए-हिज्राँ कीजिए

सब पे तू मेहरबान है प्यारे

कुछ हमारा भी ध्यान है प्यारे

कभी उन मद-भरी आँखों से पिया था इक जाम

आज तक होश नहीं होश नहीं होश नहीं

इतने हिजाबों पर तो ये आलम है हुस्न का

क्या हाल हो जो देख लें पर्दा उठा के हम

ऐसा कहाँ बहार में रंगीनियों का जोश

शामिल किसी का ख़ून-ए-तमन्ना ज़रूर था

एक दिल है और तूफ़ान-ए-हवादिस 'जिगर'

एक शीशा है कि हर पत्थर से टकराता हूँ मैं

तेरी आँखों का कुछ क़ुसूर नहीं

हाँ मुझी को ख़राब होना था

बराबर से बच कर गुज़र जाने वाले

ये नाले नहीं बे-असर जाने वाले

अहबाब मुझ से क़त-ए-तअल्लुक़ करें 'जिगर'

अब आफ़्ताब-ए-ज़ीस्त लब-ए-बाम गया

क्या ख़बर थी ख़लिश-ए-नाज़ जीने देगी

ये तिरी प्यार की आवाज़ जीने देगी

लबों पे मौज-ए-तबस्सुम निगह में बर्क़-ए-ग़ज़ब

कोई बताए ये अंदाज़-ए-बरहमी क्या है

उन का जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें

मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहाँ तक पहुँचे

दिल गया रौनक़-ए-हयात गई

ग़म गया सारी काएनात गई

मिरी ज़िंदगी तो गुज़री तिरे हिज्र के सहारे

मिरी मौत को भी प्यारे कोई चाहिए बहाना

हूँ ख़ता-कार सियाहकार गुनहगार मगर

किस को बख़्शे तिरी रहमत जो गुनहगार हो

किधर से बर्क़ चमकती है देखें वाइज़

मैं अपना जाम उठाता हूँ तू किताब उठा

आदमी के पास सब कुछ है मगर

एक तन्हा आदमिय्यत ही नहीं

मुझी में रहे मुझ से मस्तूर हो कर

बहुत पास निकले बहुत दूर हो कर

मिरे रश्क-ए-बे-निहायत को पूछ मेरे दिल से

तुझे तुझ से भी छुपाता अगर इख़्तियार होता

वो ख़लिश जिस से था हंगामा-ए-हस्ती बरपा

वक़्फ़-ए-बेताबी-ए-ख़ामोश हुई जाती है

हज्व ने तो तिरा शैख़ भरम खोल दिया

तू तो मस्जिद में है निय्यत तिरी मय-ख़ाने में

मोहब्बत सुल्ह भी पैकार भी है

ये शाख़-ए-गुल भी है तलवार भी है

कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं रहे

जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे

दिल है क़दमों पर किसी के सर झुका हो या हो

बंदगी तो अपनी फ़ितरत है ख़ुदा हो या हो

आतिश-ए-इश्क़ वो जहन्नम है

जिस में फ़िरदौस के नज़ारे हैं

मेरी बर्बादियाँ दुरुस्त मगर

तू बता क्या तुझे सवाब हुआ

दुनिया के सितम याद अपनी ही वफ़ा याद

अब मुझ को नहीं कुछ भी मोहब्बत के सिवा याद

हम ने सीने से लगाया दिल अपना बन सका

मुस्कुरा कर तुम ने देखा दिल तुम्हारा हो गया

जहल-ए-ख़िरद ने दिन ये दिखाए

घट गए इंसाँ बढ़ गए साए

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