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नअत1
जिगर मुरादाबादी के शेर
सुनते थे मोहब्बत आसाँ है वल्लाह बहुत आसाँ है मगर
इस सहल में जो दुश्वारी है वो मुश्किल सी मुश्किल में नहीं
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आबाद अगर न दिल हो तो बरबाद कीजिए
गुलशन न बन सके तो बयाबाँ बनाइए
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टैग : प्रेरणादायक
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जिसे सय्याद ने कुछ गुल ने कुछ बुलबुल ने कुछ समझा
चमन में कितनी मानी-ख़ेज़ थी इक ख़ामुशी मिरी
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टैग : ख़ामोशी
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मेरे दर्द में ये ख़लिश कहाँ मेरे सोज़ में ये तपिश कहाँ
किसी और ही की पुकार है मिरी ज़िंदगी की सदा नहीं
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धड़कने लगा दिल नज़र झुक गई
कभी उन से जब सामना हो गया
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आँखों में नमी सी है चुप चुप से वो बैठे हैं
नाज़ुक सी निगाहों में नाज़ुक सा फ़साना है
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कमाल-ए-तिश्नगी ही से बुझा लेते हैं प्यास अपनी
इसी तपते हुए सहरा को हम दरिया समझते हैं
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अल्लाह अगर तौफ़ीक़ न दे इंसान के बस का काम नहीं
फ़ैज़ान-ए-मोहब्बत आम सही इरफ़ान-ए-मोहब्बत आम नहीं
गुदाज़-ए-इश्क़ नहीं कम जो मैं जवाँ न रहा
वही है आग मगर आग में धुआँ न रहा
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सुना है हश्र में हर आँख उसे बे-पर्दा देखेगी
मुझे डर है न तौहीन-ए-जमाल-ए-यार हो जाए
मुझ को मस्त-ए-शराब होना था
मोहतसिब को कबाब होना था
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ये मय-ख़ाना है बज़्म-ए-जम नहीं है
यहाँ कोई किसी से कम नहीं है
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टैग : मय-कदा
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गुनाहगार के दिल से न बच के चल ज़ाहिद
यहीं कहीं तिरी जन्नत भी पाई जाती है
न ग़रज़ किसी से न वास्ता मुझे काम अपने ही काम से
तिरे ज़िक्र से तिरी फ़िक्र से तिरी याद से तिरे नाम से
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टैग : महबूब
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या वो थे ख़फ़ा हम से या हम हैं ख़फ़ा उन से
कल उन का ज़माना था आज अपना ज़माना है
मुझ को नहीं क़ुबूल दो-आलम की वुसअतें
क़िस्मत में कू-ए-यार की दो-गज़ ज़मीं रहे
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ये राज़ सुन रहे हैं इक मौज-ए-दिल-नशीं से
डूबे हैं हम जहाँ पर उभरेंगे फिर वहीं से
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ज़ब्त का जिन्हें दावा इश्क़ में रहा अक्सर
हाल हम ने देखा है बेशतर ख़राब उन का
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सेहन-ए-चमन को अपनी बहारों पे नाज़ था
वो आ गए तो सारी बहारों पे छा गए
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टैग : स्वागत
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इधर से भी है सिवा कुछ उधर की मजबूरी
कि हम ने आह तो की उन से आह भी न हुई
तिरे जमाल की तस्वीर खींच दूँ लेकिन
ज़बाँ में आँख नहीं आँख में ज़बान नहीं
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आप के दुश्मन रहें वक़्फ़-ए-ख़लिश सर्फ़-ए-तपिश
आप क्यूँ ग़म-ख़्वारी-ए-बीमार-ए-हिज्राँ कीजिए
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सब पे तू मेहरबान है प्यारे
कुछ हमारा भी ध्यान है प्यारे
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कभी उन मद-भरी आँखों से पिया था इक जाम
आज तक होश नहीं होश नहीं होश नहीं
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टैग : आँख
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इतने हिजाबों पर तो ये आलम है हुस्न का
क्या हाल हो जो देख लें पर्दा उठा के हम
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ऐसा कहाँ बहार में रंगीनियों का जोश
शामिल किसी का ख़ून-ए-तमन्ना ज़रूर था
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एक दिल है और तूफ़ान-ए-हवादिस ऐ 'जिगर'
एक शीशा है कि हर पत्थर से टकराता हूँ मैं
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तेरी आँखों का कुछ क़ुसूर नहीं
हाँ मुझी को ख़राब होना था
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बराबर से बच कर गुज़र जाने वाले
ये नाले नहीं बे-असर जाने वाले
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अहबाब मुझ से क़त-ए-तअल्लुक़ करें 'जिगर'
अब आफ़्ताब-ए-ज़ीस्त लब-ए-बाम आ गया
क्या ख़बर थी ख़लिश-ए-नाज़ न जीने देगी
ये तिरी प्यार की आवाज़ न जीने देगी
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लबों पे मौज-ए-तबस्सुम निगह में बर्क़-ए-ग़ज़ब
कोई बताए ये अंदाज़-ए-बरहमी क्या है
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उन का जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें
मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहाँ तक पहुँचे
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दिल गया रौनक़-ए-हयात गई
ग़म गया सारी काएनात गई
मिरी ज़िंदगी तो गुज़री तिरे हिज्र के सहारे
मिरी मौत को भी प्यारे कोई चाहिए बहाना
हूँ ख़ता-कार सियाहकार गुनहगार मगर
किस को बख़्शे तिरी रहमत जो गुनहगार न हो
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किधर से बर्क़ चमकती है देखें ऐ वाइज़
मैं अपना जाम उठाता हूँ तू किताब उठा
आदमी के पास सब कुछ है मगर
एक तन्हा आदमिय्यत ही नहीं
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टैग : इंसान
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मुझी में रहे मुझ से मस्तूर हो कर
बहुत पास निकले बहुत दूर हो कर
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मिरे रश्क-ए-बे-निहायत को न पूछ मेरे दिल से
तुझे तुझ से भी छुपाता अगर इख़्तियार होता
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वो ख़लिश जिस से था हंगामा-ए-हस्ती बरपा
वक़्फ़-ए-बेताबी-ए-ख़ामोश हुई जाती है
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हज्व ने तो तिरा ऐ शैख़ भरम खोल दिया
तू तो मस्जिद में है निय्यत तिरी मय-ख़ाने में
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टैग : तंज़
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मोहब्बत सुल्ह भी पैकार भी है
ये शाख़-ए-गुल भी है तलवार भी है
कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं रहे
जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे
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दिल है क़दमों पर किसी के सर झुका हो या न हो
बंदगी तो अपनी फ़ितरत है ख़ुदा हो या न हो
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आतिश-ए-इश्क़ वो जहन्नम है
जिस में फ़िरदौस के नज़ारे हैं
मेरी बर्बादियाँ दुरुस्त मगर
तू बता क्या तुझे सवाब हुआ
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दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद
अब मुझ को नहीं कुछ भी मोहब्बत के सिवा याद
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हम ने सीने से लगाया दिल न अपना बन सका
मुस्कुरा कर तुम ने देखा दिल तुम्हारा हो गया
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टैग : दिल
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जहल-ए-ख़िरद ने दिन ये दिखाए
घट गए इंसाँ बढ़ गए साए
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