जोश मलसियानी
ग़ज़ल 20
नज़्म 1
अशआर 23
किस तरह दूर हों आलाम-ए-ग़रीब-उल-वतनी
ज़िंदगी ख़ुद भी ग़रीब-उल-वतनी होती है
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डूब जाते हैं उमीदों के सफ़ीने इस में
मैं न मानूँगा कि आँसू है ज़रा सा पानी
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भलाई ये कि आज़ादी से उल्फ़त तुम भी रखते हो
बुराई ये कि आज़ादी से उल्फ़त हम भी रखते हैं
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वही मरने की तमन्ना वही जीने की हवस
न जफ़ाएँ तुम्हें आईं न वफ़ाएँ आईं
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सोज़-ए-ग़म ही से मिरी आँख में आँसू आए
सोचता हूँ कि इसे आग कहूँ या पानी
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हास्य शायरी 1
क़ितआ 1
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