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Mahtab Haider Naqvi's Photo'

महताब हैदर नक़वी

1955 | अलीगढ़, भारत

महताब हैदर नक़वी

ग़ज़ल 33

अशआर 3

एक मैं हूँ और दस्तक कितने दरवाज़ों पे दूँ

कितनी दहलीज़ों पे सज्दा एक पेशानी करे

नए सफ़र की लज़्ज़तों से जिस्म जाँ को सर करो

सफ़र में होंगी बरकतें सफ़र करो सफ़र करो

मतलब के लिए हैं मआनी के लिए हैं

ये शेर तबीअत की रवानी के लिए हैं

 

पुस्तकें 9

 

वीडियो 11

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
Ek toofan ka saman bani hai kai cheez_Ghazal by Mahtab haidar Naqvi

महताब हैदर नक़वी

Mahtab Haidar Naqvi reciting his Ghazal/Nazm at Mushaira (Shaam-e-Sher) by Rekhta.org-2014

महताब हैदर नक़वी

Mahtab ke liye hain na maani ke liye hain_Ghazal by Mahtab Haidar Naqvi

महताब हैदर नक़वी

Phir kisi khwab ki palkon pe sawari aai_Ghazal by Mahtab Haidar Naqvi

महताब हैदर नक़वी

Usi dard aashna dil ki taraf daari mein rehte hain by Mahtab Haidar Naqvi

महताब हैदर नक़वी

Yunhi sar chadh ke har ek mauj e bala bolegi_Couplet by Mahtab haidar Naqvi

महताब हैदर नक़वी

उसी दर्द-आश्ना दिल की तरफ़-दारी में रहते हैं

महताब हैदर नक़वी

एक तूफ़ान का सामान बनी है कोई चीज़

महताब हैदर नक़वी

फिर किसी ख़्वाब की पलकों पे सवारी आई

महताब हैदर नक़वी

मतलब के लिए हैं न मआनी के लिए हैं

महताब हैदर नक़वी

यूँ ही सर चढ़ के हर इक मौज-ए-बला बोलेगी

महताब हैदर नक़वी

ऑडियो 15

अगर कोई ख़लिश-ए-जावेदाँ सलामत है

अपनी ख़ातिर सितम ईजाद भी हम करते हैं

अब रहे या न रहे कोई मलाल-ए-दुनिया

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