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मज़हर इमाम

1928 - 2012 | दिल्ली, भारत

प्रमुखतम आधुकि शायरों में विख्यात/दूर दर्शन से संबंध

प्रमुखतम आधुकि शायरों में विख्यात/दूर दर्शन से संबंध

मज़हर इमाम

ग़ज़ल 61

नज़्म 5

 

अशआर 28

अस्र-ए-नौ मुझ को निगाहों मैं छुपा कर रख ले

एक मिटती हुई तहज़ीब का सरमाया हूँ

तू है गर मुझ से ख़फ़ा ख़ुद से ख़फ़ा हूँ मैं भी

मुझ को पहचान कि तेरी ही अदा हूँ मैं भी

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निगाह दिल के पास हो वो मेरा आश्ना रहे

हवस है या कि इश्क़ है ये कौन सोचता रहे

समेट लें मह ख़ुर्शीद रौशनी अपनी

सलाहियत है ज़मीं में भी जगमगाने की

हमें वो हमीं से जुदा कर गया

बड़ा ज़ुल्म इस मेहरबानी में था

रेखाचित्र 2

 

पुस्तकें 910

चित्र शायरी 4

 

वीडियो 4

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ऑडियो 8

ज़लज़ले सब दिल के अंदर हो गए

ज़िंदगी काविश-ए-बातिल है मिरा साथ न छोड़

टूटी हुई दीवार का साया तो नहीं हूँ

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