मोहम्मद ख़ालिद के शेर
कौन सुनता है हवाओं की अजब सरगोशियाँ
और जाती हैं हवाएँ दर-ब-दर किस के लिए
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अव्वल-ए-इश्क़ की साअत जा कर फिर नहीं आई
फिर कोई मौसम पहले मौसम सा नहीं देखा
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