मुनव्वर राना के शेर
तुम्हें भी नींद सी आने लगी है थक गए हम भी
चलो हम आज ये क़िस्सा अधूरा छोड़ देते हैं
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फ़रिश्ते आ कर उन के जिस्म पर ख़ुश्बू लगाते हैं
वो बच्चे रेल के डिब्बों में जो झाड़ू लगाते हैं
ऐ ख़ाक-ए-वतन तुझ से मैं शर्मिंदा बहुत हूँ
महँगाई के मौसम में ये त्यौहार पड़ा है
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ऐसा लगता है कि वो भूल गया है हम को
अब कभी खिड़की का पर्दा नहीं बदला जाता
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हँस के मिलता है मगर काफ़ी थकी लगती हैं
उस की आँखें कई सदियों की जगी लगती हैं
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भले लगते हैं स्कूलों की यूनिफार्म में बच्चे
कँवल के फूल से जैसे भरा तालाब रहता है
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किसी की याद आती है तो ये भी याद आता है
कहीं चलने की ज़िद करना मिरा तय्यार हो जाना
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मैं ने कल शब चाहतों की सब किताबें फाड़ दें
सिर्फ़ इक काग़ज़ पे लिक्खा लफ़्ज़-ए-माँ रहने दिया
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टैग : माँ
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स्टेशन से बाहर आ कर बूढ़ी आँखें सोच रही हैं
पत्ते देहाती रहते हैं फल शहरी हो जाते हैं
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सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर
मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते
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टैग : मज़दूर
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तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो
तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है
तुम ने जब शहर को जंगल में बदल डाला है
फिर तो अब क़ैस को जंगल से निकल आने दो
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सगी बहनों का जो रिश्ता है उर्दू और हिन्दी में
कहीं दुनिया की दो ज़िंदा ज़बानों में नहीं मिलता
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अभी ज़िंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
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किसी दिन मेरी रुस्वाई का ये कारन न बन जाए
तुम्हारा शहर से जाना मिरा बीमार हो जाना
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खिलौनों के लिए बच्चे अभी तक जागते होंगे
तुझे ऐ मुफ़्लिसी कोई बहाना ढूँड लेना है
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टैग : मुफ़्लिसी
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एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है
तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना
वुसअत-ए-सहरा भी मुँह अपना छुपा कर निकली
सारी दुनिया मिरे कमरे के बराबर निकली
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टैग : सहरा
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मोहब्बत एक पाकीज़ा अमल है इस लिए शायद
सिमट कर शर्म सारी एक बोसे में चली आई
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इस में बच्चों की जली लाशों की तस्वीरें हैं
देखना हाथ से अख़बार न गिरने पाए
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जो छुपा लेता है दीवार की उर्यानी को
दोस्तो ऐसा कैलेंडर नहीं फेंका जाता
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तुम्हारा नाम आया और हम तकने लगे रस्ता
तुम्हारी याद आई और खिड़की खोल दी हम ने
शहर के रस्ते हों चाहे गाँव की पगडंडियाँ
माँ की उँगली थाम कर चलना बहुत अच्छा लगा
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टैग : माँ
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शायद जली हैं फिर कहीं नज़दीक बस्तियाँ
गुज़रे हैं कुछ परिंदे इधर से डरे हुए
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दौलत से मोहब्बत तो नहीं थी मुझे लेकिन
बच्चों ने खिलौनों की तरफ़ देख लिया था
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आँखों से माँगने लगे पानी वुज़ू का हम
काग़ज़ पे जब भी देख लिया माँ लिखा हुआ
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टैग : माँ
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भटकती है हवस दिन-रात सोने की दुकानों पर
ग़रीबी कान छिदवाती है तिनका डाल लेती है
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तुझे मा'लूम है इन फेफड़ों में ज़ख़्म आए हैं
तिरी यादों की इक नन्ही सी चिंगारी बचाने में
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'मुनव्वर' माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती
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टैग : माँ
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खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी हैं गाँव से
बासी भी हो गई हैं तो लज़्ज़त वही रही
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जितने बिखरे हुए काग़ज़ हैं वो यकजा कर ले
रात चुपके से कहा आ के हवा ने हम से
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हादसों की गर्द से ख़ुद को बचाने के लिए
माँ हम अपने साथ बस तेरी दु'आ ले जाएँगे
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टैग : माँ
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ये सोच के माँ बाप की ख़िदमत में लगा हूँ
इस पेड़ का साया मिरे बच्चों को मिलेगा
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टैग : पिता
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मुक़द्दस मुस्कुराहट माँ के होंटों पर लरज़ती है
किसी बच्चे का जब पहला सिपारा ख़त्म होता है
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टैग : माँ
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मिरे बच्चों में सारी आदतें मौजूद हैं मेरी
तो फिर इन बद-नसीबों को न क्यूँ उर्दू ज़बाँ आई
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टैग : उर्दू
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अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो
तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो
कुछ बिखरी हुई यादों के क़िस्से भी बहुत थे
कुछ उस ने भी बालों को खुला छोड़ दिया था
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हर चेहरे में आता है नज़र एक ही चेहरा
लगता है कोई मेरी नज़र बाँधे हुए है
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हमारी दोस्ती से दुश्मनी शर्माई रहती है
हम अकबर हैं हमारे दिल में जोधाबाई रहती है
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जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा
मैं अपनी माँ का आख़िरी ज़ेवर बना रहा
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दिया है माँ ने मुझे दूध भी वुज़ू कर के
महाज़-ए-जंग से मैं लौट कर न जाऊँगा
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दिन भर की मशक़्क़त से बदन चूर है लेकिन
माँ ने मुझे देखा तो थकन भूल गई है
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टैग : माँ
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इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
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टैग : माँ
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हम नहीं थे तो क्या कमी थी यहाँ
हम न होंगे तो क्या कमी होगी
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पचपन बरस की उम्र तो होने को आ गई
लेकिन वो चेहरा आँखों से ओझल न हो सका
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जब भी देखा मिरे किरदार पे धब्बा कोई
देर तक बैठ के तन्हाई में रोया कोई
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टैग : माँ
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अब आप की मर्ज़ी है सँभालें न सँभालें
ख़ुशबू की तरह आप के रूमाल में हम हैं
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बहन का प्यार माँ की मामता दो चीख़ती आँखें
यही तोहफ़े थे वो जिन को मैं अक्सर याद करता था
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टैग : माँ
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घर में रहते हुए ग़ैरों की तरह होती हैं
लड़कियाँ धान के पौदों की तरह होती हैं
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टैग : औरत
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तुम्हारे शहर में मय्यत को सब कांधा नहीं देते
हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं
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