नसीर तुराबी के शेर
तुझ से बिछड़ूँ तो कोई फूल न महके मुझ में
देख क्या कर्ब है क्या ज़ात की सच्चाई है
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ये राह-ए-तमन्ना है यहाँ देख के चलना
इस राह में सर मिलते हैं पत्थर नहीं मिलता
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उसी ने मुझ पे उठाए हैं संग जिस के लिए
मैं पाश पाश हुआ घर निगार-ख़ाना हुआ
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टैग : घर
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क़ुर्बतें रेत की दीवार हैं गिर सकती हैं
मुझ को ख़ुद अपने ही साए में ठहर जाना था
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कहने को ग़म-ए-हिज्र बड़ा दुश्मन-ए-जाँ है
पर दोस्त भी इस दोस्त से बेहतर नहीं मिलता
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मिलने की तरह मुझ से वो पल भर नहीं मिलता
दिल उस से मिला जिस से मुक़द्दर नहीं मिलता
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बिछड़ते वक़्त उन आँखों में थी हमारी ग़ज़ल
ग़ज़ल भी वो जो किसी को अभी सुनाई न थी
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ये हवा सारे चराग़ों को उड़ा ले जाएगी
रात ढलने तक यहाँ सब कुछ धुआँ हो जाएगा
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तुझे क्या ख़बर मिरे बे-ख़बर मिरा सिलसिला कोई और है
जो मुझी को मुझ से बहम करे वो गुरेज़-पा कोई और है
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अदावतें थीं, तग़ाफ़ुल था, रंजिशें थीं बहुत
बिछड़ने वाले में सब कुछ था, बेवफ़ाई न थी
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ये रूह रक़्स-ए-चराग़ाँ है अपने हल्क़े में
ये जिस्म साया है और साया ढल रहा है मियाँ
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टैग : ज़िंदगी
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शायद ये इंतिज़ार की लौ फ़ैसला करे
मैं अपने साथ हूँ कि दरीचों के साथ हूँ
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टैग : इंतिज़ार
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इस कड़ी धूप में साया कर के
तू कहाँ है मुझे तन्हा कर के
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कुछ रोज़ नसीर आओ चलो घर में रहा जाए
लोगों को ये शिकवा है कि घर पर नहीं मिलता
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टैग : सोशल डिस्टेन्सिंग शायरी
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मुद्दतों बा'द अगर सामने आए हम तुम
धुँदले धुँदले से मिलेंगे ख़द-ओ-ख़ाल ऐसे में
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ख़ुद अपने हिज्र की ख़्वाहिश मुझे अज़ीज़ रही
ये तेरे वस्ल का क़िस्सा तो इक बहाना हुआ
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मैं इक शजर की तरह रह-गुज़र में ठहरा हूँ
थकन उतार के तू किस तरफ़ रवाना हुआ
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टैग : शजर
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आज की रात उजाले मिरे हम-साया हैं
आज की रात जो सो लूँ तो नया हो जाऊँ
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शहर में किस से सुख़न रखिए किधर को चलिए
इतनी तन्हाई तो घर में भी है घर को चलिए
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टैग : तन्हाई
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वो हम-सफ़र था मगर उस से हम-नवाई न थी
कि धूप छाँव का आलम रहा जुदाई न थी
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