नोमान शौक़ के शेर
रेल देखी है कभी सीने पे चलने वाली
याद तो होंगे तुझे हाथ हिलाते हुए हम
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टैग : विदाई
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तुम तो सर्दी की हसीं धूप का चेहरा हो जिसे
देखते रहते हैं दीवार से जाते हुए हम
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टैग : सर्दी
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जम्हूरियत के बीच फँसी अक़्लियत था दिल
मौक़ा जिसे जिधर से मिला वार कर दिया
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टैग : लोकतंत्र
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कुछ न था मेरे पास खोने को
तुम मिले हो तो डर गया हूँ मैं
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एक दिन दोनों ने अपनी हार मानी एक साथ
एक दिन जिस से झगड़ते थे उसी के हो गए
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ज़रा ये हाथ मेरे हाथ में दो
मैं अपनी दोस्ती से थक चुका हूँ
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आइने का सामना अच्छा नहीं है बार बार
एक दिन अपनी ही आँखों में खटक सकता हूँ मैं
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मेरी ख़ुशियों से वो रिश्ता है तुम्हारा अब तक
ईद हो जाए अगर ईद-मुबारक कह दो
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इश्क़ क्या है ख़ूबसूरत सी कोई अफ़्वाह बस
वो भी मेरे और तुम्हारे दरमियाँ उड़ती हुई
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इश्क़ में सच्चा था वो मेरी तरह
बेवफ़ा तो आज़माने से हुआ
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रो रो के लोग कहते थे जाती रहेगी आँख
ऐसा नहीं हुआ, मिरी बीनाई बढ़ गई
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टैग : बीनाई
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बड़े घरों में रही है बहुत ज़माने तक
ख़ुशी का जी नहीं लगता ग़रीब-ख़ाने में
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कभी लिबास कभी बाल देखने वाले
तुझे पता ही नहीं हम सँवर चुके दिल से
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दूर जितना भी चला जाए मगर
चाँद तुझ सा तो नहीं हो सकता
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इस बार इंतिज़ाम तो सर्दी का हो गया
क्या हाल पेड़ कटते ही बस्ती का हो गया
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टैग : पर्यावरण
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बस तिरे आने की इक अफ़्वाह का ऐसा असर
कैसे कैसे लोग थे बीमार अच्छे हो गए
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हम जैसों ने जान गँवाई पागल थे
दुनिया जैसी कल थी बिल्कुल वैसी है
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हम भी माचिस की तीलियों से थे
जो हुआ सिर्फ़ एक बार हुआ
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अपनी आहट पे चौंकता हूँ मैं
किस की दुनिया में आ गया हूँ मैं
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टैग : आहट
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वो तंज़ को भी हुस्न-ए-तलब जान ख़ुश हुए
उल्टा पढ़ा गया, मिरा पैग़ाम और था
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फिर इस मज़ाक़ को जम्हूरियत का नाम दिया
हमें डराने लगे वो हमारी ताक़त से
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वो मेरे लम्स से महताब बन चुका होता
मगर मिला भी तो जुगनू पकड़ने वालों को
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फ़क़ीर लोग रहे अपने अपने हाल में मस्त
नहीं तो शहर का नक़्शा बदल चुका होता
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चख लिया उस ने प्यार थोड़ा सा
और फिर ज़हर कर दिया है मुझे
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हमें बुरा नहीं लगता सफ़ेद काग़ज़ भी
ये तितलियाँ तो तुम्हारे लिए बनाते हैं
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पहनते ख़ाक हैं ख़ाक ओढ़ते बिछाते हैं
हमारी राय भी ली जाए ख़ुश-लिबासी पर
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नाम ही ले ले तुम्हारा कोई
दोनों हाथों से लुटाऊँ ख़ुद को
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मुझ को भी पहले-पहल अच्छे लगे थे ये गुलाब
टहनियाँ झुकती हुईं और तितलियाँ उड़ती हुईं
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ऐसी ही एक शब में किसी से मिला था दिल
बारिश के साथ साथ बरसती है रौशनी
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ख़ुदा मुआफ़ करे सारे मुंसिफ़ों के गुनाह
हम ही ने शर्त लगाई थी हार जाने की
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वो साँप जिस ने मुझे आज तक डसा भी नहीं
तमाम ज़हर सुख़न में मिरे उसी का है
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उस का मिलना कोई मज़ाक़ है क्या
बस ख़यालों में जी उठा हूँ मैं
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मोहब्बत वाले हैं कितने ज़मीं पर
अकेला चाँद ही बे-नूर है क्या
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तिरे बग़ैर कोई और इश्क़ हो कैसे
कि मुशरिकों के लिए भी ख़ुदा ज़रूरी है
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खिल रहे हैं मुझ में दुनिया के सभी नायाब फूल
इतनी सरकश ख़ाक को किस अब्र ने नम कर दिया
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सुना है शोर से हल होंगे सारे मसअले इक दिन
सो हम आवाज़ को आवाज़ से टकराते रहते हैं
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जाने किस उम्मीद पे छोड़ आए थे घर-बार लोग
नफ़रतों की शाम याद आए पुराने यार लोग
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क़ाएदे बाज़ार के इस बार उल्टे हो गए
आप तो आए नहीं पर फूल महँगे हो गए
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डर डर के जागते हुए काटी तमाम रात
गलियों में तेरे नाम की इतनी सदा लगी
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हम को डरा कर, आप को ख़ैरात बाँट कर
इक शख़्स रातों-रात जहाँगीर हो गया
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फूल वो रखता गया और मैं ने रोका तक नहीं
डूब भी सकती है मेरी नाव सोचा तक नहीं
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वो तो कहिए आप की ख़ुशबू ने पहचाना मुझे
इत्र कह के जाने क्या क्या बेचते अत्तार लोग
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हम बहुत पछताए आवाज़ों से रिश्ता जोड़ कर
शोर इक लम्हे का था और ज़िंदगी भर का सुकूत
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मिरा कुछ रास्ते में खो गया है
अचानक चलते चलते रुक गया हूँ
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बदन ने कितनी बढ़ा ली है सल्तनत अपनी
बसे हैं इश्क़ ओ हवस सब इसी इलाक़े में
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आप की सादा-दिली से तंग आ जाता हूँ मैं
मेरे दिल में रह चुके हैं इस क़दर हुश्यार लोग
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उस ने हँस कर हाथ छुड़ाया है अपना
आज जुदा हो जाने में आसानी है
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नाम से उस के पुकारूँ ख़ुद को
आज हैरान ही कर दूँ ख़ुद को
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लिपटा भी एक बार तो किस एहतियात से
ऐसे कि सारा जिस्म मोअत्तर न हो सके
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