पीरज़ादा क़ासीम
ग़ज़ल 51
नज़्म 14
अशआर 6
इक सज़ा और असीरों को सुना दी जाए
यानी अब जुर्म-ए-असीरी की सज़ा दी जाए
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उस की ख़्वाहिश है कि अब लोग न रोएँ न हँसें
बे-हिसी वक़्त की आवाज़ बना दी जाए
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ग़म से बहल रहे हैं आप आप बहुत अजीब हैं
दर्द में ढल रहे हैं आप आप बहुत अजीब हैं
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शहर तलब करे अगर तुम से इलाज-ए-तीरगी
साहिब-ए-इख़्तियार हो आग लगा दिया करो
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पुस्तकें 4
चित्र शायरी 2
कभी हवा तो कभी ख़ाक-ए-रहगुज़र होना मिरे नसीब में लिक्खा है दर-ब-दर होना अगर चलो तो मिरे साथ ही चलो लेकिन कठिन सफ़र से ज़ियादा है हम-सफ़र होना उदास उदास ये दीवार-ओ-दर बताते हैं कि जैसे रास न हो उन को मेरा घर होना क़दम उठे भी नहीं और सफ़र तमाम हुआ ग़ज़ब है राह का इतना भी मुख़्तसर होना ये दौर-ए-कम-नज़राँ है तो फिर हुनर का ज़ियाँ जो एक बार न होना तो बेशतर होना
वीडियो 26
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