सईद क़ैस
ग़ज़ल 18
नज़्म 3
अशआर 9
अपनी आवाज़ सुनाई नहीं देती मुझ को
एक सन्नाटा कि गलियों में बहुत बोलता है
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उसी के लुत्फ़ से बस्ती निहाल है सारी
तमाम पेड़ लगाए हुए उसी के हैं
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तुम से मिलने का बहाना तक नहीं
और बिछड़ जाने के हीले हैं बहुत
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तलब के रास्ते पर आ गया हूँ
बताओ अब मुझे जाना कहाँ है
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मैं भी अपनी ज़ात में आबाद हूँ
मेरे अंदर भी क़बीले हैं बहुत
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