साहिर भोपाली के शेर
वफ़ा तो कैसी जफ़ा भी नहीं है अब हम पर
अब इतना सख़्त मोहब्बत से इंतिक़ाम न ले
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तलातुम का एहसान क्यूँ हम उठाएँ
हमें डूबने को किनारा बहुत है
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