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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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साक़िब लखनवी

1869 - 1946 | लखनऊ, भारत

प्रमुख उत्तर कलासिकी शायर / अपने शेर ‘बड़े ग़ौर से सुन रहा था ज़माना...’ के लिए मशहूर

प्रमुख उत्तर कलासिकी शायर / अपने शेर ‘बड़े ग़ौर से सुन रहा था ज़माना...’ के लिए मशहूर

साक़िब लखनवी

ग़ज़ल 46

अशआर 19

अपने दिल-ए-बेताब से मैं ख़ुद हूँ परेशाँ

क्या दूँ तुम्हें इल्ज़ाम मैं कुछ सोच रहा हूँ

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उस के सुनने के लिए जम'अ हुआ है महशर

रह गया था जो फ़साना मिरी रुस्वाई का

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चल हम-दम ज़रा साज़-ए-तरब की छेड़ भी सुन लें

अगर दिल बैठ जाएगा तो उठ आएँगे महफ़िल से

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ज़माना बड़े शौक़ से सुन रहा था

हमीं सो गए दास्ताँ कहते कहते

बला से हो पामाल सारा ज़माना

आए तुम्हें पाँव रखना सँभल कर

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