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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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Shahryar's Photo'

शहरयार

1936 - 2012 | अलीगढ़, भारत

अग्रणी आधुनिक उर्दू शायरों में शामिल। फ़िल्म गीतकार , ' फ़िल्म उमराव जान ' , के गीतों के लिए प्रसिद्ध। भारतीय ज्ञान पीठ एवार्ड से सम्मानित

अग्रणी आधुनिक उर्दू शायरों में शामिल। फ़िल्म गीतकार , ' फ़िल्म उमराव जान ' , के गीतों के लिए प्रसिद्ध। भारतीय ज्ञान पीठ एवार्ड से सम्मानित

शहरयार के शेर

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क्यूँ आज उस का ज़िक्र मुझे ख़ुश कर सका

क्यूँ आज उस का नाम मिरा दिल दुखा गया

है आज ये गिला कि अकेला है 'शहरयार'

तरसोगे कल हुजूम में तन्हाई के लिए

लोग सर फोड़ कर भी देख चुके

ग़म की दीवार टूटती ही नहीं

तू कहाँ है तुझ से इक निस्बत थी मेरी ज़ात को

कब से पलकों पर उठाए फिर रहा हूँ रात को

बे-नाम से इक ख़ौफ़ से दिल क्यूँ है परेशाँ

जब तय है कि कुछ वक़्त से पहले नहीं होगा

ज़ख़्मों को रफ़ू कर लें दिल शाद करें फिर से

ख़्वाबों की कोई दुनिया आबाद करें फिर से

है कोई जो बताए शब के मुसाफ़िरों को

कितना सफ़र हुआ है कितना सफ़र रहा है

नज़राना तेरे हुस्न को क्या दें कि अपने पास

ले दे के एक दिल है सो टूटा हुआ सा है

शहर-ए-उम्मीद हक़ीक़त में नहीं बन सकता

तो चलो उस को तसव्वुर ही में तामीर करें

ख़जिल चराग़ों से अहल-ए-वफ़ा को होना है

कि सरफ़राज़ यहाँ फिर हवा को होना है

उम्मीद से कम चश्म-ए-ख़रीदार में आए

हम लोग ज़रा देर से बाज़ार में आए

दिल में रखता है पलकों पे बिठाता है मुझे

फिर भी इक शख़्स में क्या क्या नज़र आता है मुझे

पहले नहाई ओस में फिर आँसुओं में रात

यूँ बूँद बूँद उतरी हमारे घरों में रात

जागता हूँ मैं एक अकेला दुनिया सोती है

कितनी वहशत हिज्र की लम्बी रात में होती है

उम्र का बाक़ी सफ़र करना है इस शर्त के साथ

धूप देखें तो उसे साए से ताबीर करें

गुलाब टहनी से टूटा ज़मीन पर गिरा

करिश्मे तेज़ हवा के समझ से बाहर हैं

हम पढ़ रहे थे ख़्वाब के पुर्ज़ों को जोड़ के

आँधी ने ये तिलिस्म भी रख डाला तोड़ के

हम जुदा हो गए आग़ाज़-ए-सफ़र से पहले

जाने किस सम्त हमें राह-ए-वफ़ा ले जाती

हर तरफ़ अपने को बिखरा पाओगे

आइनों को तोड़ के पछताओगे

अब तो ले दे के यही काम है इन आँखों का

जिन को देखा नहीं उन ख़्वाबों की ताबीर करें

जुस्तुजू जिस की थी उस को तो पाया हम ने

इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने

एक ही मिट्टी से हम दोनों बने हैं लेकिन

तुझ में और मुझ में मगर फ़ासला यूँ कितना है

जहाँ में होने को दोस्त यूँ तो सब होगा

तिरे लबों पे मिरे लब हों ऐसा कब होगा

कौन सी बात है जो उस में नहीं

उस को देखे मिरी नज़र से कोई

हुसैन-इब्न-ए-अली कर्बला को जाते हैं

मगर ये लोग अभी तक घरों के अंदर हैं

शदीद प्यास थी फिर भी छुआ पानी को

मैं देखता रहा दरिया तिरी रवानी को

आँख की ये एक हसरत थी कि बस पूरी हुई

आँसुओं में भीग जाने की हवस पूरी हुई

या तेरे अलावा भी किसी शय की तलब है

या अपनी मोहब्बत पे भरोसा नहीं हम को

आँधियाँ आती थीं लेकिन कभी ऐसा हुआ

ख़ौफ़ के मारे जुदा शाख़ से पत्ता हुआ

ये इक शजर कि जिस पे काँटा फूल है

साए में उस के बैठ के रोना फ़ुज़ूल है

पल भर में कैसे लोग बदल जाते हैं यहाँ

देखो कि ये मुफ़ीद है बीनाई के लिए

मैं अकेला सही मगर कब तक

नंगी परछाइयों के बीच रहूँ

ग़म की दौलत बड़ी मुश्किल से मिला करती है

सौंप दो हम को अगर तुम से निगहबानी हो

रात को दिन से मिलाने की हवस थी हम को

काम अच्छा था अंजाम भी अच्छा हुआ

जम्अ करते रहे जो अपने को ज़र्रा ज़र्रा

वो ये क्या जानें बिखरने में सुकूँ कितना है

या मैं सोचूँ कुछ भी उस के बारे में

या ऐसा हो दुनिया और बदल जाए

इक सिर्फ़ हमीं मय को आँखों से पिलाते हैं

कहने को तो दुनिया में मय-ख़ाने हज़ारों हैं

मिरे सूरज आ! मिरे जिस्म पे अपना साया कर

बड़ी तेज़ हवा है सर्दी आज ग़ज़ब की है

अब रात की दीवार को ढाना है ज़रूरी

ये काम मगर मुझ से अकेले नहीं होगा

हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यूँ है

अब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमें

इन दिनों मैं भी हूँ कुछ कार-ए-जहाँ में मसरूफ़

बात तुझ में भी नहीं रह गई पहले वाली

सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है

इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यूँ है

अजीब सानेहा मुझ पर गुज़र गया यारो

मैं अपने साए से कल रात डर गया यारो

बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी

दिल में उम्मीद तो काफ़ी है यक़ीं कुछ कम है

ख़ुश-गुमान हो इस पर तू दिल-ए-सादा

सभी को देख के वो शख़्स मुस्कुराता है

ये क्या है मोहब्बत में तो ऐसा नहीं होता

मैं तुझ से जुदा हो के भी तन्हा नहीं होता

आँखों को सब की नींद भी दी ख़्वाब भी दिए

हम को शुमार करती रही दुश्मनों में रात

कहाँ तक वक़्त के दरिया को हम ठहरा हुआ देखें

ये हसरत है कि इन आँखों से कुछ होता हुआ देखें

जो होने वाला है अब उस की फ़िक्र क्या कीजे

जो हो चुका है उसी पर यक़ीं नहीं आता

उम्र का लम्बा हिस्सा कर के दानाई के नाम

हम भी अब ये सोच रहे हैं पागल हो जाएँ

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