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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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वामिक़ जौनपुरी

1909 - 1998 | जौनपुर, भारत

प्रमुख प्रगतिशील शायर, अपनी नज़्म ‘भूखा बंगाल’ के लिए मशहूर

प्रमुख प्रगतिशील शायर, अपनी नज़्म ‘भूखा बंगाल’ के लिए मशहूर

वामिक़ जौनपुरी

ग़ज़ल 35

नज़्म 13

अशआर 39

इस दौर की तख़्लीक़ भी क्या शीशागरी है

हर आईने में आदमी उल्टा नज़र आए

जब पुराना लहजा खो देता है अपनी ताज़गी

इक नई तर्ज़-ए-नवा ईजाद कर लेते हैं हम

पहचान लो उस को वही क़ातिल है हमारा

जिस हाथ में टूटी हुई तलवार लगे है

रहना तुम चाहे जहाँ ख़बरों में आते रहना

हम को अहसास-ए-जुदाई से बचाते रहना

वो तो कहिए आज भी ज़ंजीर में झंकार है

वर्ना किस को याद रह जाती है दीवानों की बात

पुस्तकें 12

ऑडियो 32

अभी तो हौसला-ए-कारोबार बाक़ी है

क़िर्तास पे नक़्शे हमें क्या क्या नज़र आए

जीने का लुत्फ़ कुछ तो उठाओ नशे में आओ

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