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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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ज़फ़र गोरखपुरी

1935 - 2017 | मुंबई, भारत

अग्रणी प्रगतिशील शायर।

अग्रणी प्रगतिशील शायर।

ज़फ़र गोरखपुरी के दोहे

कौन यहाँ जो हाथ में सारा युग ले थाम

एक सिरा जो छू सके बहुत बड़ा ये काम

पर्बत हो तो फेंक दूँ किसी तरह जान

क्या छाती पे है धरा ख़ुद मैं ही अंजान

मन सहरा है प्यास का तन ज़ख़्मों की सेज

सारी धरती कर्बला मौला पानी भेज

भूकी भेड़ है जिस्म में बस सीपी भर ख़ून

चरवाहे को दूध दे या ताजिर को ऊन

हरे-भरे कुछ ध्यान थे और था कुछ पास

पाँव-तले से खींच ली किस ने ठंडी घास

सखी-री जब ये ठान ली जाना है साजन द्वार

क्या साँसों की बेड़ियाँ क्या तन की तलवार

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