संपूर्ण
परिचय
ग़ज़ल46
नज़्म39
शेर49
ई-पुस्तक6
चित्र शायरी 4
ऑडियो 26
वीडियो58
बच्चों की कहानी1
ब्लॉग1
ज़ेहरा निगाह
ग़ज़ल 46
नज़्म 39
अशआर 49
जो दिल ने कही लब पे कहाँ आई है देखो
अब महफ़िल याराँ में भी तन्हाई है देखो
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देखते देखते इक घर के रहने वाले
अपने अपने ख़ानों में बट जाते हैं
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नहीं नहीं हमें अब तेरी जुस्तुजू भी नहीं
तुझे भी भूल गए हम तिरी ख़ुशी के लिए
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बस्ती में कुछ लोग निराले अब भी हैं
देखो ख़ाली दामन वाले अब भी हैं
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शाम ढले आहट की किरनें फूटी थीं
सूरज डूब के मेरे घर में निकला था
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बच्चों की कहानी 1
चित्र शायरी 4
बैठे बैठे कैसा दिल घबरा जाता है जाने वालों का जाना याद आ जाता है बात-चीत में जिस की रवानी मसल हुई एक नाम लेते में कुछ रुक सा जाता है हँसती-बस्ती राहों का ख़ुश-बाश मुसाफ़िर रोज़ी की भट्टी का ईंधन बन जाता है दफ़्तर मंसब दोनों ज़ेहन को खा लेते हैं घर वालों की क़िस्मत में तन रह जाता है अब इस घर की आबादी मेहमानों पर है कोई आ जाए तो वक़्त गुज़र जाता है
वीडियो 58
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