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नौजवान पाकिस्तानी शायरों में अहम

नौजवान पाकिस्तानी शायरों में अहम

दिलावर अली आज़र के शेर

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इक दिन जो यूँही पर्दा-ए-अफ़्लाक उठाया

बरपा था तमाशा कोई तन्हाई से आगे

मैं जब मैदान ख़ाली कर के आया

मिरा दुश्मन अकेला रह गया था

बदन को छोड़ ही जाना है रूह ने 'आज़र'

हर इक चराग़ से आख़िर धुआँ निकलता है

चाँद तारे तो मिरे बस में नहीं हैं 'आज़र'

फूल लाया हूँ मिरा हाथ कहाँ तक जाता

उस से मिलना तो उसे ईद-मुबारक कहना

ये भी कहना कि मिरी ईद मुबारक कर दे

सभी के हाथ में पत्थर थे 'आज़र'

हमारे हाथ में इक आईना था

वही सितारा-नुमा इक चराग़ है 'आज़र'

मिरा ख़याल था निकलेगा ताक़ से कुछ और

उसे किसी से मोहब्बत थी मगर उस ने

गुलाब तोड़ के दुनिया को शक में डाल दिया

सुख़न-सराई कोई सहल काम थोड़ी है

ये लोग किस लिए जंजाल में पड़े हुए हैं

अब मुझ को एहतिमाम से कीजे सुपुर्द-ए-ख़ाक

उक्ता चुका हूँ जिस्म का मलबा उठा के मैं

एक लम्हे के लिए तन्हा नहीं होने दिया

ख़ुद को अपने साथ रक्खा जिस जहाँ की सैर की

उस से कुछ ख़ास तअल्लुक़ भी नहीं है अपना

मैं परेशान हुआ जिस की परेशानी पर

तुम ख़ुद ही दास्तान बदलते हो दफ़अतन

हम वर्ना देखते नहीं किरदार से परे

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