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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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हफ़ीज़ बनारसी

1933 - 2008 | बनारस, भारत

हफ़ीज़ बनारसी

ग़ज़ल 33

नज़्म 1

 

अशआर 25

दुश्मनों की जफ़ा का ख़ौफ़ नहीं

दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं

एक सीता की रिफ़ाक़त है तो सब कुछ पास है

ज़िंदगी कहते हैं जिस को राम का बन-बास है

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गुमशुदगी ही अस्ल में यारो राह-नुमाई करती है

राह दिखाने वाले पहले बरसों राह भटकते हैं

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सभी के दीप सुंदर हैं हमारे क्या तुम्हारे क्या

उजाला हर तरफ़ है इस किनारे उस किनारे क्या

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चले चलिए कि चलना ही दलील-ए-कामरानी है

जो थक कर बैठ जाते हैं वो मंज़िल पा नहीं सकते

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पुस्तकें 8

 

चित्र शायरी 4

 

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