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सब्ज़परी और अमजद

इशतियाक़ अहमद

सब्ज़परी और अमजद

इशतियाक़ अहमद

MORE BYइशतियाक़ अहमद

    अमजद बहुत प्यारा गोल मटोल सा लड़का था। वो पांचवीं जमात में पढ़ता था। अपना सबक़ फ़रफ़र सुनाता तो उस्ताद बहुत ख़ुश होते। घर में अपनी अम्मी के कामों में मदद करता तो वो ख़ुश हो कर उसे अपने सीने से चिमटा लेतीं। शाम को उस के अब्बा जान घर आते तो वो दौड़ कर उनसे लिपट जाता।

    ग़रज़ हर कोई उस से प्यार करता था। क्योंकि वो माँ बाप का कहना मानता था। उनका अदब करता था।

    एक दिन वो बाग़ की सैर करने गया। जिस वक़्त वो बाग़ में पहुंचा, दूर दूर तक कोई आदमी ना था। हर तरफ़ फूल खिले थे। हल्की हल्की हवा चल रही थी

    अचानक हवा का एक तेज़ झोंका उसके चेहरे से टकराया। फिर परों के फड़फड़ाने की आवाज़ आई। जैसे कोई बड़ा सा परिंदा फ़ड़फ़ड़ाता हो। अमजद डर गया। उसने चारों तरफ़ देखा लेकिन कोई परिंदा उसे नज़र ना आया। अभी वो हैरान ही हो रहा था कि एक बारीक सी आवाज़ सुनाई दी।

    ‘‘प्यारे प्यारे मुन्ने। तुम हैरान हो कर चारों तरफ़ क्या देख रहे हो?’’

    अमजद ने घबरा कर चारों तरफ़ देखा लेकिन दूर और नज़दीक उसे कोई नज़र ना आया

    आवाज़ फिर आई ‘‘तुम बहुत अच्छे हो और बहुत प्यारे हो क्योंकि तुम्हारी आदतें बहुत अच्छी हैं।’’

    अमजद डरने लगा कि ये आवाज़ें कहाँ से आरही हैं। आख़िर उसने हिम्मत कर के पूछा।

    ‘‘तुम कौन हो, मुझे तो यहां कोई भी दिखाई नहीं दे रहा है।’’

    ‘‘मैं तुम्हारी दोस्त हूँ। तुम अपने माँ बाप का कहना मानते हो, स्कूल का काम वक़्त पर करते हो। किसी को दुख नहीं देते, किसी को तंग नहीं करते। गंदे बच्चों के साथ नहीं खेलते। तुम अमजद हो ना।

    ‘‘हाँ, मैं अमजद हूँ मगर तुम कौन हो?।’’

    ‘‘मैं। मैं एक परी हूँ। ये सब्ज़परी है।’’

    सब्ज़परी ‘‘अमजद ने हैरान हो कर कहा’’

    ‘‘हाँ मुझसे डरने की ज़रूरत नहीं’’

    ‘‘मगर तुम मुझे नज़र क्यों नहीं आतीं?’’

    ‘‘ऐसा हो सकता है, लेकिन तुम्हें इस के लिए एक वादा करना होगा और वो ये कि तुम किसी से मेरा ज़िक्र नहीं करोगे’’

    ‘‘मैं वादा करता हूँ।’’

    इसी वक़्त फिर हवा का एक तेज़ झोंका उस के चेहरे से टकराया। पैरों की फड़ फड़ाहट सुनाई दी। दूसरे ही लम्हे सब्ज़परी उड़ती हुई उस के पास आकर रुक गई। उस का सारा जिस्म सब्ज़ था, सिर्फ़ बाल काले थे।

    ‘‘तो तुम हो सब्ज़परी’’ अमजद ने कहा

    हाँ और मैं तुम्हारी दोस्त हूँ

    ‘‘क्या तुम मुझे हर-रोज़ इस जगह मिलने आया करोगी?’’

    ‘‘हाँ और तुम्हारे लिए अच्छे अच्छे फल भी लाया करूँगी’’ परी ने कहा

    ‘‘इस की क्या ज़रूरत है, अब्बा जान मुझे हर-रोज़ फल ला कर देते हैं।’’

    ‘‘परस्तान में फलों के लाखों दरख़्त हैं। वो तुम्हारे हाँ के फलों से ज़्यादा मज़ेदार होंगे’’

    अच्छा। फिर तो मैं ज़रूर खाऊंगा

    और मैं तो तुम्हारे लिए आज भी लाई हूँ। ये देखो।’’

    अमजद ने परी के हाथ में दो सेब देखे। ये बिलकुल सुर्ख़ थे। अमजद ने उनमें से एक लेकर कहा

    ‘‘एक तुम खाओ’’

    दोनों सेब खाने लगे

    ‘‘परी बाजी, ये सेब तो वाक़ई बहुत मज़े का है।’’ अमजद ख़ुश हो कर बोला

    ‘‘कल मैं तुम्हें परस्तान का केला ख़िलाऊँगी। अच्छा अब मैं चलती हूँ।’’

    हवा का झोंका अमजद के चेहरे से टकराया और परी ग़ायब हो गई

    दूसरे दिन वो ठीक वक़्त पर बाग़ में पहुंच गया। आज यहां कुछ और लोग भी टहल रहे थे। उसने सोचा, शायद उन लोगों की मौजूदगी में परी ना आए। लेकिन जूंही वो इस दरख़्त के नीचे पहुंचा, हवा का झोंका आया और परी उस की आँखों के सामने थी।

    परी बाजी ये दूसरे लोग तुम्हें देख लेंगे। अमजद ने घबरा कर कहा

    ‘‘मैं उन्हें नज़र नहीं आऊँगी’’

    ‘‘अच्छा। ये तो बड़े मज़े की बात है’’

    ‘‘मैं तुम्हारे लिए दो केले लाई हूँ।’’

    अमजद ने देखा, उस के हाथ में दो लंबे लंबे सब्ज़-रंग के केले थे। दोनों ने एक एक केला खाया

    दिन यूंही गुज़रते रहे। वो हर-रोज़ परी से मिलता रहा। एक दिन वो परी से मिलने के लिए घर से निकला। कुछ दूर ही चला होगा कि सड़क पर एक बूढ़ी औरत खड़ी दिखाई दी। इस के पैरों के पास एक गठरी पड़ी थी।

    ‘‘बेटा ज़रा ये गठरी तो उठा कर मेरे घर पहुंचा दो’’ वो बोली

    अमजद रुक गया। उसने बूढ़िया को ग़ौर से देखा। वो बुरी तरह हांप रही थी। अमजद को उस पर रहम आगया। वो गठरी उठाने के लिए झुका ही था कि उसे सब्ज़परी का ख़्याल आगया, उसने सोचा अगर मुझे देर हो गई तो परी चली जाएगी और मैं मज़ेदार आड़ू खाने से रह जाऊँगा। आज परी ने आड़ू लाने का वा‘दा किया था।

    वो बूढ़िया से बोला ‘‘बूढ़ी अम्मां मुझे एक ज़रूरी काम है, इसलिए मैं तुम्हारी मदद नहीं कर सकता।’’ ये कह कर वो आगे बढ़ गया। बाग़ में वो सीधा उस दरख़्त के नीचे आया लेकिन आज ना कोई हवा का झोंका आया, ना परों की आवाज़ उस के कानों में आई। वो घबरा गया

    परेशान हो कर बोला ‘‘परी बाज़ी आज तुम कहाँ हो। देखो तुम्हारा दोस्त आगया है। वो तुम्हें पुकार रहा है।’’ उसने ख़ामोश हो कर इधर उधर देखा। परी का दूर दूर तक पता ना था। दो तीन मर्तबा उसने परी को पुकारा, लेकिन कोई भी जवाब ना मिला। अब तो उसकी मायूसी की कोई हद ना रही। काफ़ी देर तक इंतिज़ार करने के बाद भी जब परी ना आई तो वो उदास हो गया और घर लौट आया

    सारी रात उसे नींद ना आई। वो सोचता रहा। आज परी क्यों नहीं आई। मैंने तो उस के मुतअल्लिक़ किसी को बताया भी नहीं। कहीं वो बीमार ना हो गई हो शायद उसे बुख़ार हो गया हो। या फिर नज़ला ज़ुकाम ना हो गया हो। हो सकता है उसे ठंड लग गई हो और निमोनिया हो गया हो।

    रात-भर वो सोचता रहा फिर ना जाने कब उस की आँख लग गई। दूसरे दिन वो फिर मुक़र्ररा वक़्त पर बाग़ में पहुंच गया, लेकिन परी उस दिन भी ना आई। फिर तीन दिन इसी तरह गुज़र गए। चौथे दिन उस की आँखों में आँसू झिलमिला उठे और वो हमेशा हमेशा के लिए मायूस हो गया।

    ऐ’न उसी वक़्त हवा का एक तेज़ झोंका उस के चेहरे से टकराया, परों की आवाज़ आई। वो ख़ुश हो गया। इस का चेहरा खिल उठा। दूसरे ही लम्हे परी उस की आँखों के सामने थी।

    ‘‘परी बाजी तुम चार दिन कहाँ रहीं।’’ उसने शिकायत भरे लहजे में कहा

    ‘‘मैं तुमसे नाराज़ हूँ।’’ परी बोली

    ‘‘क्यों परी बाजी मैंने तो किसी से आपका ज़िक्र तक नहीं किया।’’

    ‘‘ये ठीक है, लेकिन क्या तुम जानते हो, इस दुनिया में सबसे बड़ी नेकी क्या है। दूसरी के काम आना। इस दुनिया के सरदार प्यारे नबी हज़रत मोहमम्मद भी दूसरों के काम आया करते थे। वो बूढ़ी औरतों का बोझ ख़ुद उठा लिया करते थे, और तुम ... तुमने चंद आड़ूओं की ख़ातिर उस बूढ़ी औरत की मदद नहीं की।’’

    ‘‘ओह!’’ अमजद के मुँह से निकला। अब उसे परी के ना आने की वजह मालूम हुई

    ‘‘जब मैंने देखा कि तुमने बूढ़ी औरत की मदद नहीं की तो मैं तुमसे नाराज़ हो गई और इसलिए तुम्हारे पास नहीं आई।’’

    ‘‘परी बाजी मुझे माफ़ कर दो मुझसे बड़ी भूल हुई। अब ऐसी ग़लती मुझसे कभी नहीं होगी। मैं हमेशा दूसरों के काम आऊँगा। ग़रीबों, यतीमों और बूढ़ों के काम आऊँगा’’

    अमजद बोला

    ‘‘शाबाश अब हम फिर दोस्त हैं। मैं तुम्हें बताऊं, वो बूढ़िया मैं ही थी और तुम्हारा इम्तिहान लेना चाहती थी।’’

    अमजद सब्ज़परी की बात सुनकर हैरान रह गया।

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