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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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आबिद मलिक

ग़ज़ल 12

अशआर 10

अभी से इस में शबाहत मिरी झलकने लगी

अभी तो दश्त में दो चार दिन गुज़ारे हैं

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फ़लक से कैसे मिरा ग़म दिखाई देगा तुझे

कभी ज़मीन पे और ज़मीं से देख मुझे

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बड़े सुकून से अफ़्सुर्दगी में रहता हूँ

मैं अपने सामने वाली गली में रहता हूँ

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ये मोहब्बत कोई अंजान सी शय होती थी

क्या ये कम है कि इसे तेरी बदौलत समझे

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सब मुझे ढूँडने निकले हैं बुझा कर आँखें

बात निकली है कि मैं ख़्वाब में पाया गया हूँ

क़ितआ 8

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