इक़बाल अशहर के शेर
वो किसी को याद कर के मुस्कुराया था उधर
और मैं नादान ये समझा कि वो मेरा हुआ
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तेरी बातों को छुपाना नहीं आता मुझ से
तू ने ख़ुश्बू मिरे लहजे में बसा रक्खी है
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आज फिर नींद को आँखों से बिछड़ते देखा
आज फिर याद कोई चोट पुरानी आई
न जाने कितने चराग़ों को मिल गई शोहरत
इक आफ़्ताब के बे-वक़्त डूब जाने से
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मुद्दतों ब'अद पशेमाँ हुआ दरिया हम से
मुद्दतों ब'अद हमें प्यास छुपानी आई
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फिर तिरा ज़िक्र किया बाद-ए-सबा ने मुझ से
फिर मिरे दिल को धड़कने के बहाने आए
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किसी को खो के पा लिया किसी को पा के खो दिया
न इंतिहा ख़ुशी की है न इंतिहा मलाल की
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'अज़ीम लोग थे टूटे तो इक वक़ार के साथ
किसी से कुछ न कहा बस उदास रहने लगे
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जो उस के होंटों की जुम्बिश में क़ैद था 'अशहर'
वो एक लफ़्ज़ बना बोझ मेरे शानों का
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ठहरी ठहरी सी तबीअत में रवानी आई
आज फिर याद मोहब्बत की कहानी आई
सुनो समुंदर की शोख़ लहरो हवाएँ ठहरी हैं तुम भी ठहरो
वो दूर साहिल पे एक बच्चा अभी घरौंदे बना रहा है
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वैसे भी उस से कोई रब्त न रक्खा मैं ने
यूँ भी दुनिया में कशिश तेरी ब-निसबत कम थी
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वही तो मरकज़ी किरदार है कहानी का
उसी पे ख़त्म है तासीर बेवफ़ाई की
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टैग : बेवफ़ाई
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तेरे किरदार को इतना तो शरफ़ हासिल है
तू नहीं था तो कहानी में हक़ीक़त कम थी
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प्यास दरिया की निगाहों से छुपा रक्खी है
एक बादल से बड़ी आस लगा रक्खी है
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सोचता हूँ तिरी तस्वीर दिखा दूँ उस को
रौशनी ने कभी साया नहीं देखा अपना
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टैग : तस्वीर
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सभी अपने नज़र आते हैं ब-ज़ाहिर लेकिन
रूठने वाला है कोई न मनाने वाला
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मुद्दतों ब'अद मयस्सर हुआ माँ का आँचल
मुद्दतों ब'अद हमें नींद सुहानी आई
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टैग : माँ
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ले गईं दूर बहुत दूर हवाएँ जिस को
वही बादल था मिरी प्यास बुझाने वाला
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आरज़ू है सूरज को आइना दिखाने की
रौशनी की सोहबत में एक दिन गुज़ारा है
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