जव्वाद शैख़
ग़ज़ल 25
अशआर 16
अगर वो करने पे आता तो कुछ भी कर जाता
ये सोच मत कि अकेला शरार क्या करता
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मैं अब किसी की भी उम्मीद तोड़ सकता हूँ
मुझे किसी पे भी अब कोई ए'तिबार नहीं
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मैं चाहता हूँ मोहब्बत मुझे फ़ना कर दे
फ़ना भी ऐसा कि जिस की कोई मिसाल न हो
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लग रहा है ये नर्म लहजे से
फिर तुझे कोई मसअला हुआ है
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