कौसर मज़हरी
लेख 1
अशआर 14
चाँद है पानी में या भूले हुए चेहरे का अक्स
साहिल-ए-दरिया पे देखो मैं भी हैरानी में हूँ
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तआक़ुब में है मेरे याद किस की
मैं किस को भूल जाना चाहता हूँ
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नज़र झुक रही है ख़मोशी है लब पर
हया है अदा है कि अन-बन है क्या है
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बोझ दिल पर है नदामत का तो ऐसा कर लो
मेरे सीने से किसी और बहाने लग जाओ
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मौसम-ए-दिल जो कभी ज़र्द सा होने लग जाए
अपना दिल ख़ून करो फूल उगाने लग जाओ
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