अपने जैसी कोई तस्वीर बनानी थी मुझे
मिरे अंदर से सभी रंग तुम्हारे निकले
सालिम सलीम का जन्म 1985 में उत्तर प्रदेश के घनी आबादी वाले शहर आज़मगढ़ में हुआ। उच्च शिक्षा के लिए वो अलीगढ़ गए, जहाँ से उन्होंने बी.ए. की डिग्री प्राप्त की। जेएनयू से एम.ए. की पढ़ाई पूरी की और जामिया मिलिया इस्लामिया से एम.फिल. पूरा करने के बाद, उन्होंने मशहूर शायर और नाक़िद सलीम अहमद के शेरी सरोकार पर दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की। उनकी एम.फिल. की थीसिस मशहूर शायर जौन एलिया पर है, जिसमें उन्होंने जौन एलिया की शख़्सियत और उनके फ़न पर रौशनी डाली है।
उनका पहला शेरी मज्मूआ उर्दू में "वाहिमा बजूद का" के नाम से और देवनागरी लिपि में "सभी रंग तम्हारे निकले" के नाम से रेख़्ता फ़ाउंडेशन से शाए हुआ।
सलीम सलीम नई पीढ़ी के उन अहम शायरों में से एक माने जाते हैं जिन्होंने अपने अन्दर की आवाज़ को लफ़्ज़ों में पिरोया। उनकी शायरी में ख़ुद को और चीजों को देखने का एक नया नज़रिया मिलता है। इस वक़्त उनकी शायरी को बड़े क़द्र से देखा जाता है। वो पिछले दस वर्षों से रेख़्ता फाउंडेशन से जुड़े हुए हैं।